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________________ [२१ प्रथम शतक : उद्देशक-१] पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति ? अणागतकालसमए गेण्हंति ? गोयमा! नो तीतकालसमए गेण्हंति, पडुपन्नकालसमए गेण्हंति, नो अणागतकालसमए गेण्हंति १। [१-७ प्र.] हे भगवन्! नारक जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) काल में ग्रहण करते हैं ? अथवा अनागत (भविष्य) काल में ग्रहण करते हैं ? _ [१-७ उ.] गौतम! अतीत काल में ग्रहण नहीं करते; वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं; भविष्यकाल में ग्रहण नहीं करते। [१-८] नेरइयाणंभंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंतिते किं तीतकालसमयगहिते पोग्गले उदीरेंति ? पडुप्पन्नकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति ? गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति? गोयमा! तीतकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पडुप्पन्नकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो गहणसमयपुरेक्खडे पोग्गले उदीरेंति २। एवं वेदेति ३, निजरेंति ४। - [१-८ प्र.] हे भगवन्! नारक जीव तैजस और कर्माणरूप में ग्रहण किये हुए जिन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, सो क्या अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? या वर्तमान काल में ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? अथवा जिनका उदयकाल आगे आने वाला है, ऐसे भविष्यकालविषयक पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? [१-८ उ.] हे गौतम! वे अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, (परन्तु) वर्तमान काल में ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते, तथा आगे ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की भी उदीरणा नहीं करते। इसी प्रकार (उदीरणा की तरह) अतीत काल में गृहीत पुद्गलों को वेदते हैं और उनकी निर्जरा करते हैं। [१-९] नेरइयाणं भंते! जीवातो किं चलियं कम्मं बंधंति ? अचलियं कम्मं बंधंति ? गोयमा! नो चलियं कम्मं बंधंति, अचलितं. कम्मं बंधंति १। एवं उदीरेंति २ वेदेति ३ आयेटेंति ४ संकामेति ५ निहत्तेति ७। सव्वेसु णो चलियं, अचलियं। . [१-९ प्र.] भगवन्! क्या नारक जीव प्रदेशों से चलित (जो जीवप्रदेशों में अवगाढ़ नहीं हैं, ऐसे) कर्म को बाँधते हैं, या अचलित (जीव प्रदेशों में स्थित) कर्म को बांधते हैं ? । [१-९उ.] गौतम! (वे) चलित कर्म को नहीं बांधते (किन्तु) अचलित कर्म को बांधते हैं। __ इसी प्रकार (बंध के अनुसार ही वे) अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं, अचलित कर्म का ही वेदन करते हैं, अपवर्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं, निधत्ति करते हैं और निकाचन करते हैं। इन सब पदों में अचलित (कर्म) कहना चाहिए, चलित (कर्म) नहीं।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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