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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गाथार्थ – परिणत, चित्त, उपचित, उदीरित, वेदिता और निर्जीर्ण, इस एक-एक पद में चार के पुद्गल (प्रश्नोत्तर के विषय) होते हैं।
प्रकार
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[ १६ ] नेरइया णं भंते! कतिविहा पोग्गला भिज्जंति ?
गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति । तं जहा - अणू चेव बादरा चेव १ ।
नेरइया णं भंते! कतिविहा पोग्गला चिज्जंति ?
गोयमा! आहारदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जति । तं जहा - अणू चेव बादरा चेव २ । एवं उवचिज्जंति ३ ।
नेरइया णं भंते! कतिविहे पोग्गले उदीरेंति ?
गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणं अहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदीरेंति । तं जहा - अणू चेव बादरे चेव ४ । एवं वेदेंति ५ । निज्जरेंति ६ । ओयट्टिसु ७ । ओयट्टेति ८ । ओयट्टिस्संति ९ । संकामिंसु १०। संकार्मेति ११ । संकामिस्संति १२ । निहत्तिंसु १३ । निहत्तेंति १४ । निहत्तिस्संति १५ । निकायंसु १६ । निकाएंति १७ । निकाइस्संति १८ । सव्वेसु वि कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च । गाहा— भेदित चिता उवाचित उदीरिता वेदिया य निज्जिण्णा । ओट्टण-संकामण-निहत्तण- निकायणे तिविह कालो ॥४ ॥
[१-६ प्र.] हे भगवन्! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं ?
[१-६ उ.] हे गौतम! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं । वे इस प्रकार -अणु (सूक्ष्म) और बादर (स्थूल ) १ ।
(प्र.) भगवन् ! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल चय किये जाते हैं ?
(उ.) गौतम! आहारद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल चय किये जाते हैं । वे इस प्रकार हैं - अणु और बादर २.; इसी प्रकार उपचय समझना ३. ।
(प्र.) भगवन् ! नारक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ?
(उ.) गौतम! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं। वह इस प्रकार हैं - अणु और बादर ४ । शेष पद भी इसी प्रकार कहने चाहिए - वेदते हैं ५, निर्जरा करते हैं ६, अपवर्तन को प्राप्त हुए, ७, अपवर्तन को प्राप्त हो रहे हैं ८, अपवर्तन को प्राप्त करेंगे ९; संक्रमण किया १०, संक्रमण करते हैं ११, संक्रमण करेंगे १२; निधत्त हुए १३, निधत्त होते हैं १४ निधत्त होंगे. १५. निकाचित हुए १६, निकाचित होते हैं १७, निकाचित होंगे १८; इन सब पदों में भी कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा (अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए।)
गाथार्थ - भेदे गए, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, उदीर्ण हुए, वेदे गए और निर्जीर्ण हुए (इसी प्रकार ) अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन, (इन पिछले चार ) पदों में भी तीनों प्रकार का काल कहना चाहिए।
[ १-७ ] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति ते किं तीतकालसमए गेण्हंति !