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________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (७) सभाविसर्जन के बाद श्रोतागण द्वारा कृतज्ञताप्रकाश, यथाशक्ति धर्माचरण का संकल्प, एवं स्वस्थान प्रतिगमन का वर्णन। (८) श्री गौतमस्वामी के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व का वर्णन। (९) श्री गौतमस्वामी के मन में उठे हुए प्रश्न और भगवान् महावीर से सविनय पूछने की तैयारी। प्रस्तुत शास्त्र किसने, किससे कहा ?-प्रस्तुत भगवती सूत्र का वर्णन पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी ने अपने शिष्य जम्बूस्वामी के समक्ष किया था। इसका कारण आवश्यकसूत्र-नियुक्ति में बताया गया है कि सुधर्मास्वामी का ही तीर्थ चला है। अन्य गणधरों की शिष्य परम्परा नहीं चली, सिर्फ सुधर्मास्वामी के शिष्य हुए हैं। 'चलमाणे चलिए' आदि पदों का एकार्थ-नानार्थ ५.(१)से नूणं भंते!चलमाणेचलिते? उदीरिज्जमाणे उदीरिते २? वेइज्जमाणे वेइए ३? पहिज्जमाणे पहीणे ४? छिज्जमाणे छिन्ने ५? भिज्जमाणे भिन्ने ६? डज्झमाणे डड्ढे ७? मिज्जमाणे मडे ८? निजरिज्जमाणे निज्जिपणे ९? हंता गोयमा! चलमाणे चलिए जाव निजरिज्जमाणे निज्जिण्णे। ५-[१ प्र.] हे भदन्त (भगवन्) ! क्या यह निश्चित कहा जा सकता है कि १.जो चल रहा हो, वह चला?, २. जो (कर्म) उदीरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ?, ३. जो (कर्म) वेदा (भोगा) जा रहा है,वह वेदा गया? ४.जो गिर (पतित या नष्ट हो) रहा है, वह गिरा (पतित हुआ या हटा)?५. जो (कर्म) छेदा जा रहा है, वह छिन्न हुआ? ६. जो (कर्म) भेदा जा रहा है, वह भिन्न हुआ (भेदा गया)? ७. जो (कर्म) दग्ध हो रहा है, वह दग्ध हुआ?, ८. जो मर रहा है, वह मरा?, ९. जो (कर्म) निर्जरित हो रहा है, वह निर्जीण हुआ? [१ उ.] हाँ गौतम! जो चल रहा हो, उसे चला, यावत् निर्जरित हो रहा है, उसे निर्जीण हुआ (इस प्रकार कहा जा सकता है।) [२]एएणं भंते! नव पदा किं एगट्ठा नाणाघोसा नाणावंजणा उदाहु नाणट्ठा नाणाघोसा नाणावंजणा? ३. परिषद् प्रतिगमन वर्णन-औपपातिक सूत्र ३५-३६-३७ चतुर्जानी गौतमस्वामी द्वारा प्रश्न पूछने के पांच कारण-(१) अतिशययुक्त होते हुए भी छद्मस्थ होने के कारण, (२) स्वयं जानते हुए भी ज्ञान की अविसंवादिता के लिए, (५) अन्य अज्ञजनों के बोध के लिए, (४) शिष्यों को अपने वचन में विश्वास बिठाने केलिए, (५) शस्त्ररचना की यही पद्धति होने से। -भगवतीसूत्र वृत्ति, पत्रांक १६ (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति पत्रांक ७ से १४ तक का सारांश। (ख)वही-पत्रांक ६-"तित्थं च सुहम्माओ, निरवच्चा गणहरा सेसा।" (ग) जम्बूस्वामी द्वारा पृच्छा-'जइ णं भंते! पंचमस्स अंगस्स विवाहपन्नत्तीए....के अठे पण्णत्ते?' -ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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