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प्रथम शतक : उद्देशक - १]
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(४) तत्पश्चात् जातश्रद्ध (प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले), जातसंशय, जातकुतूहल, संजातश्रद्ध, समुत्पन्न श्रद्धा वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले भगवान् गौतम उत्थान से ( अपने स्थान से उठकर) खड़े होते हैं। उत्थानपूर्वक खड़े होकर श्रमण गौतम जहाँ (जिस ओर) श्रमण भगवान् महावीर हैं, उस ओर (उनके निकट) आते हैं। निकट आकर श्रमण भगवान् महावीर को उनके दाहिने ओर से प्रारम्भ करके तीन बार प्रदक्षिणा करते हैं । फिर वन्दन - नमस्कार करते हैं । नमस्कार करके वे न तो बहुत पास और न बहुत दूर भगवान् के समक्ष विनय से ललाट पर हाथ जोड़े हुए भगवान् के वचन सुनना चाहते हुए उन्हें नमन करते व उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले
विवेचन - राजगृह में भगवान् महावीर का पदार्पण : गौतम स्वामी की प्रश्न पूछने की तैयारी - प्रस्तुत चतुर्थ सूत्र से शास्त्र का प्रारम्भ किया गया है। इसमें नगर, राजा, रानी, भगवान् महावीर, परिषद् – समवसरण, धर्मोपदेश, गौतमस्वामी तथा उनके द्वारा प्रश्न पूछने की तैयारी तक का क्षेत्र या व्यक्तियों का वर्णन किया गया है, वह सब भगवती सूत्र में यत्र-तत्र श्री भगवान् महावीर स्वामी से श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न और उनके द्वारा दिये गये उत्तरों की पृष्ठभूमि के रूप में अंकित किया गया है। इस समग्र पाठ में कुछ वर्णन के लिए 'वर्णक' या 'जाव' से अन्य सूत्र से जान लेने की सूचना है, कुछ का वर्णन यहीं कर दिय गया है। इस समग्र पाठ का क्रमशः वर्णन इस प्रकार है
(१) भगवान् महावीर के युग के राजगृह नगर का वर्णन ।
(२) वहाँ के तत्कालीन राजा श्रेणिक और रानी, चिल्लणा का उल्लेख ।
(३) अनेक विशेषणों से युक्त श्रमण भगवान् महावीर का राजगृह के आसपास विचरण ।
(४) इसके पश्चात् 'समवसरण' तक के वर्णन में निम्नोक्त वर्णन गर्भित हैं - (अ) भगवान् के १००८ लक्षणसम्पन्न शरीर तथा चरण-कमलों का वर्णन, (जिनसे वे पैदल विहार कर रहे थे), (आ) उनकी बाह्य (अष्टमहाप्रातिहार्यरूपा) एवं अन्तरंग विभूतियों का वर्णन, (इ) उनके चौदह हजार साधुओं और छत्तीस हजार आर्यिकाओं के परिवार का वर्णन (ई) बड़े-छोटे के क्रम से ग्रामानुग्राम सुखपूर्वक विहार करते हुए राजगृह नगर तथा तदन्तर्गत गुणशीलक चैत्य में पदार्पण का वर्णन, (उ) तदनन्तर उस चैत्य में अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विराजमान हुए और उनका समवसरण लगा। (ए) समवसरण में विविध प्रकार के ज्ञानादि शक्तियों से सम्पन्न साधुओं आदि का वर्णन, तथा असुरकुमार, शेष भवनपतिदेव, व्यन्तरदेव, ज्योतिष्कदेव एवं वैमानिकदेवों का भगवान् के समीप आगमन एवं उनके द्वारा भगवान् की पर्युपासना का वर्णन।
(५) परिषद् के निर्गमन का विस्तृत वर्णन ।
(६) भगवान् महावीर द्वारा दिये गए धर्मोपदेश का वर्णन |
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राजगृह वर्णन - औपपातिक सूत्र १
भगवान् के शरीरादि का वर्णन - औपपातिक सूत्र १०, १४, १५, १६, १७
देवागमन वर्णन - औपपातिक सूत्र २२ से २६ तक
परिषद् निर्गमन वर्णन - औपपातिक सूत्र २७ से ३३ तक धर्मकथा वर्णन - औपपातिक सूत्र ३४