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________________ ५१६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१०-१ प्र.] भगवन्! क्या वहाँ (नरकक्षेत्र में) रहे हुए नैरयिकों को इस प्रकार का प्रज्ञान (विशिष्ट ज्ञान) होता है, जैसे कि—यह समय (है), आवलिका (है), यावत् (यह) उत्सर्पिणी काल (या) अवसर्पिणी काल (है)?" [१०-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। (अर्थात् —वहाँ रहे हुए नैरयिक जीवों को समयादि का प्रज्ञान नहीं होता।) [२] से केणढेणं जावई समया ति वा आवलिया ति वा जाव ओसप्पिणी ति वा उस्सप्पिणी ति वा? गोयमा! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इह तेसिं एवं पण्णायति, तं जहा–समया ति वा जाव उस्सप्पिणी ति वा।से तेणढेणं जाव नो एवं पण्णायति,तं जहा—समया ति वा जाव उस्सप्पिणी ति वा। [१०-२ प्र.] भगवन्! किस कारण से नरकस्थ नैरयिकों को समय, आवलिका, यावत् उत्सर्पिणीअवसर्पिणी काल का प्रज्ञान नहीं होता? [१०-२ उ.] गौतम! यहाँ (मनुष्यलोक में) समयादि का मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए यहाँ (मनुष्य क्षेत्र में) उनका (समयादि का) ऐसा प्रज्ञापन होता है कि यह समय है, यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है, (किन्तु नरक में न तो समयादि का मान है, न प्रमाण है और न ही प्रज्ञान है।) इस कारण से कहा जाता है कि नरकस्थित नैरयिकों को इस प्रकार से समय, आवलिका यावत् उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी-काल का प्रज्ञापन नहीं होता। ११. एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं। [११] जिस प्रकार नरकस्थित नैरयिकों के (समयादिप्रज्ञान के) विषय में कहा गया है; उसी प्रकार (भवनपति देवों, स्थावर जीवों, तीन विकलेन्द्रियों से लेकर) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों तक के लिए कहना चाहिए। १२.[१]अत्थि णं भंते! मणुस्साणं इहगताणं एवं पण्णायति, तं जहा.-समया ति वा जाव उस्सप्पिणी ति वा ? हंता, अत्थि। [१२-१ प्र.] भगवन् ! क्या यहाँ (मनुष्यलोक में) रहे हुए मनुष्यों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, कि (यह) समय (है), अथवा यावत् (यह) उत्सर्पिणीकाल (है)? [१२-१ उ.] हाँ, गौतम! (यहाँ रहे हुए मनुष्यों को समयादि का प्रज्ञान) होता है। [२] से केणढेणं०? २. ३. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २४७ 'जाव' पद यहाँ समग्र प्रश्न वाक्य पुनः उच्चारण करने का सूचक है।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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