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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
१६. [ १ ] एगगुणकालए णं भंते! पोग्गले कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ।
[१६-१ प्र.] भगवन्! एकगुण काला पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक (एकगुण काला)
रहता है?
[१६ - १ उ.] गौतम ! जघन्यतः एक समय तक और उत्कष्टतः असंख्येय काल तक (एकगुण काला पुद्गल रहता है ।)
[ २ ] एवं जाव अनंतगुणकालए।
[१६-२] इसी प्रकार ( द्विगुणकाले पुदगल से लेकर) यावत् अनन्तगुणकाले पुद्गल का (पूर्वोक्त प्रकार से ) कथन करना चाहिए ।
१७. एवं वण्ण-गंध-रस- फास० जाव अनंतगुणलुक्खे।
[१७] इसी प्रकार (एक गुण ) वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श वाले पुद्गल के विषय में यावत् अनन्तगुण रूक्ष पुद्गल तक पूर्वोक्त प्रकार से काल की अपेक्षा से कथन करना चाहिए ।
१८. एवं सुहुमपरिणए पोग्गले ।
[१८] इसी प्रकार सूक्ष्म - परिणत (सूक्ष्म - परिणामी ) पुद्गल के सम्बन्ध में कहना चाहिए । १९. एवं बादरपरिणए पोग्गले ।
[१९] इसी प्रकार बादर - परिणत (स्थूल परिणाम वाले) पुद्गल के सम्बन्ध में कहना चाहिए। २०. सद्दपरिणते णं भंते! पोग्गले कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं ।
[२० प्र.] भगवन्! शब्दपरिणत पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक (शब्दपरिणत) रहता है ? [२० उ.] गौतम! शब्दपरिणतपुद्गल जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग तक रहता है।
२१. असद्दपरिणते जहा एगगुणकालए।
[२१] जिस प्रकार एकगुण काले पुद्गल के विषय में कहा है, उसी तरह अशब्दपरिणत पुद्गल (की कालावधि) के विषय में कहना चाहिए ।
विवेचन—- द्रव्य-क्षेत्र - भावगत पुद्गलों का काल की अपेक्षा से निरूपण प्रस्तुत आठ सूत्रों द्वारा शास्त्रकार ने द्रव्यगत, क्षेत्रगत, एवं वर्ण- गन्ध-रस - स्पर्शभावगत पुद्गलों का काल की अपेक्षा से निरूपण किया है ।
द्रव्य-क्षेत्र - भावगतपुद्गल — प्रस्तुत सूत्रों में 'परमाणुपुद्गल' का उल्लेख करके द्रव्यगत पुद्गल की ओर, एकप्रदेशावगाढ़ आदि कथन करके क्षेत्रगतपुद्गल की ओर, तथा वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श