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पंचम शतक : उद्देशक-७]
[४८७ स्कन्ध में तीन प्रदेशों की अपेक्षा दो प्रदेशों का स्पर्श करते समय एक प्रदेश बाकी रहता है। द्रव्य-क्षेत्र-भावगत पुद्गलों का काल की अपेक्षा से निरूपण
१४.[१] परमाणुपोग्गले णं भंते! कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। [१४-१ प्र.] भगवन्! परमाणुपुद्गल काल की अपेक्षा कब तक रहता है ?
[१४-१ उ.] गौतम! परमाणुपुद्गल (परमाणुपुद्गल के रूप में) जघन्य (कम से कम) एक समय तक रहता है, और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) असंख्यकाल तक रहता है।
[२] एवं जाव अणंतपदेसिओ। [१४-२] इसी प्रकार (द्विप्रदेशीस्कन्ध से लेकर) यावत् अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक कहना चाहिए।
१५.[१]एगपदेसोगाढे णं भंते! पोग्गले सेए तम्मि वा ठाणे अन्नम्मि वा ठाणे कालओ केवचिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभार्ग।
[१५-१ प्र.] भगवन्! एक आकाश-प्रदेशावगाढ़ (एक आकाशप्रदेश में स्थित) पुद्गल उस (स्व) स्थान में या अन्य स्थान में काल की अपेक्षा से कब तक सकम्प (सैज) रहता है ?
[१५-१ उ.] गौतम! (एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक (उभय स्थानों में) सकम्प रहता है।
[२] एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढे।
. [१५-२] इसी तरह (द्विप्रदेशावगाढ़ से लेकर) यावत् असंख्येय प्रदेशावगाढ़ तक कहना चाहिए।
[३] एगपदेसोगाढे णं भंते! पोग्गले निरेए कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेजं कालं।
[१५-३ प्र.] भगवन्! एक आकाशप्रदेश में अवगाढ़ पुद्गल काल की अपेक्षा से कब तक निष्कम्प (निरेज) रहता है ?
[१५-३ उ.] गौतम! (एक-प्रदेशावगाढ़ पुद्गल) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक असंख्येयकाल तक निष्कम्प रहता है।)
[४] एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढे।
[१५-४] इसी प्रकार (द्विप्रदेशावगाढ़ से लेकर) यावत् असंख्येय प्रदेशावगाढ़ तक (के विषय में कहना चाहिए।) १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २३४