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________________ ८] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नमन करता हूँ, तथा भाव से आत्मा को अप्रशस्त परिणति से पृथक् करके अर्हन्त आदि के गुणों में करता हूँ। 'अरहंताणं' पद के रूपान्तर और विभिन्न अर्थ - प्राकृत भाषा के ' अरहंत' शब्द के संस्कृत में ७ रूपान्तर बताए गए हैं - ( १ ) अर्हन्त, (२) अरहोन्तर, (३) अरथान्त, (४) अरहन्त, (५) अरहयत्, (६) अरिहन्त और (७) अरुहन्त आदि । क्रमशः अर्थ यों हैं अर्हन्त – वे लोकपूज्य पुरुष, जो देवों द्वारा निर्मित अष्टमहाप्रातिहार्य रूप पूजा के योग्य हैं, इन्द्रों द्वारा भी पूजनीय हैं। अरहोन्तर - सर्वज्ञ होने से एकान्त (रह) और अन्तर (मध्य) की कोई भी बात जिनसे छिपी नहीं है, वे प्रत्यक्षद्रष्टा पुरुष । अरथान्त – रथ शब्द समस्त प्रकार के परिग्रह का सूचक है। जो समस्त प्रकार के परिग्रह से और अन्त (मृत्यु) से रहित हैं । अरहन्त - आसक्ति से रहित, अर्थात् राग या मोह का सर्वथा अन्त - नाश करने वाले । अरहयत् - तीव्र राग के कारणभूत मनोहर विषयों का संसर्ग होने पर भी ( अष्ट महाप्रातिहार्यादि सम्पदा के विद्यमान होने पर भी ) जो परम वीतराग होने से किञ्चित् भी रागभाव को प्राप्त नहीं होते, वे महापुरुष अरहयत् कहलाते हैं । अरिहन्त – समस्त जीवों के अन्तरंग शत्रुभूत आत्मिक विकारों या अष्टविध कर्मों का विशिष्ट साधना द्वारा क्षय करने वाले । अरुहन्त - रुह कहते हैं - सन्तान परम्परा को । जिन्होंने कर्मरूपी बीज को जलाकर जन्म-मरण की परम्परा को सर्वथा विनष्ट कर दिया है, वे अरुहन्त कहलाते हैं । २ - - "सिद्धाणं" पद के विशिष्ट अर्थ - सिद्ध शब्द के वृत्तिकार ने ६ निर्वचनार्थ किये हैं – (१) बंधे हुए (सित अष्टकर्म रूप ईन्धन को जिन्होंने भस्म कर दिया है, वे सिद्ध हैं, (२) जो ऐसे स्थान में सिधार (गमन कर) चुके हैं, जहाँ से कदापि लौटकर नहीं आते, (३) जो सिद्ध-कृतकृत्य हो चुके हैं, (४) जो संसार को सम्यक् उपदेश देकर संसार के लिए मंगलरूप हो चुके हैं, (५) जो सिद्ध - नित्य हो चुके हैं, शाश्वत स्थान को प्राप्त कर चुके हैं, (६) जिनके गुणसमूह सिद्ध - प्रसिद्ध हो चुके हैं। १. २. ३. 'दव्वभावसंकोयण पयत्थो नमः ' - भगवती वृत्ति पत्रांक ३ (क) भगवती वृत्ति पत्रांक ३ (ख) 'अरिहंत बंदणनमंसणाणि, अरिहंति पूयसक्कारं । ' सिद्धिगमणं च अरहा, अरहंता तेण वुच्वंति ॥ (ग) अट्ठविहंपि य कम्मं अरिभूयं होइ सयलजीवाणं ॥ तं कम्ममरिं हंता अरिहंता तेण वुच्चति ॥ - भगवती वृत्ति पत्रांक ३ (क) भगवती वृत्ति पत्रांक ३ (ख) ध्यातं सितं येन पुराणकम्मं, यो वा गतो निर्वृतिसौधमूर्ध्नि । ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठतार्थो, यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमंगलो मे ॥ - १ - भगवती वृत्ति पत्रांक ४
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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