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________________ ३९४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ईसाणवडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जाइं जोयणसहस्साई वीतिवतित्ता तत्थ णं ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो सुमणे नाम महाविमाणे पण्णत्ते, अद्धतेरसजोयण जहा सक्कस्स वत्तव्वता ततियसते तहा ईसाणस्स वि जाव अच्चणिया समत्ता। [४ प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज का 'सुमन' नामक महाविमान कहाँ है? [४ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर-पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल से, यावत् ईशान नामक कल्प (देवलोक) कहा है। उसमें यावत् पांच अवतंसक कहे हैं, वे इस प्रकार हैं-अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक और जातरूपावतंसक; इन चारों अवतंसकों के मध्य में ईशानावतंसक है। उस ईशानावतंसक नामक महाविमान से पूर्व में तिरछे असंख्येय हजार योजन आगे जाने पर देवेन्द्र, देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज का 'सुमन' नामक महाविमान है। उसकी लम्बाई और चौड़ाई साढ़े बारह लाख योजन है। इत्यादि सारी वक्तव्यता तृतीय शतक (सप्तम उद्देशक) में कथित शक्रेन्द्र (के लोकपाल सोम के महाविमान) की वक्तव्यता के समान यहाँ भी ईशानेन्द्र (के लोकपाल सोम के महाविमान) के सम्बन्ध में यावत्-अर्चनिका समाप्तिपर्यन्त कहनी चाहिए। ५. चउण्ह वि लोगपालाणं विमाणे विमाणे उद्देसओ। चउसु विमाणेसु चत्तारि उद्देसा अपरिसेसा। नवरं ठितीए नाणत्तं आदि दुय तिभागूणा पलिया धणयस्स होंति दो चेव । दो सतिभागा वरुणे पलियमहावच्चदेवाणं ॥१॥ ॥चउत्थे सए पढम-बिइय-तइय-चउत्था उद्देसा समत्ता॥ [५] (एक लोकपाल के विमान की वक्तव्यता जहाँ पूर्ण होती है, वहाँ एक उद्देशक समाप्त होता इस प्रकार चारों लोकपालों में से प्रत्येक के विमान की वक्तव्यता पूरी हो वहाँ एक-एक उद्देशक समझना। चारों (लोकपालों के चारों) विमानों की वक्तव्यता में चार उद्देशक पूर्ण हुए समझना। विशेष यह है कि इनकी स्थिीत में अन्तर है। वह इस प्रकार है—आदि के दो सोम और यम लोकपाल की स्थिति (आयु) त्रिभागन्यून दो-दो पल्योपम की है, वैश्रमण की स्थिति दो पल्योपम की है और वरुण की स्थिति त्रिभागसहित दो पल्योपम की है। अपत्यरूप देवों की स्थिति एक पल्योपम की है। विवेचन–ईशानेन्द्र के चार लोकपालों के विमानों का निरूपण—प्रस्तुत चार उद्देशकों में चार सूत्रों द्वारा ईशानेन्द्र के सोम, यम, वैश्रमण और वरुण लोकपालों के चार विमान, उन चारों का स्थान, तथा चारों लोकपालों की स्थिति का निरूपण किया है। सु. ४ में सोम लोकपाल के सुमन नामक महाविमान के सम्बन्ध में बतला कर प्रथम उद्देशक पूर्ण किया है, शेष तीन उद्देशकों में दूसरे, तीसरे और चौथे लोकपाल के विमान की वक्तव्यता शक्रेन्द्र के इसी नाम के लोकपालों के विमानों की वक्तव्यता के समान अतिदेश (भलामण) करके एक एक उद्देशक पूर्ण किया। ॥चतुर्थ शतक : प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ उद्देशक समाप्त॥ १. तीसरे शतक का सातवाँ उद्देशक देखना चाहिए।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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