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________________ चउत्थं सयं : चतुर्थ शतक चतुर्थ शतक की संग्रहणी गाथा १. चत्तारि विमाणेहिं १-४ चत्तारि य होति रायहाणीहिं ५-८ । नेरइए ९ लेस्साहि १० य दस उद्देसा चउत्थसते ॥१॥ [१] गाथा का अर्थ- इस चौथे शतक में दस उद्देशक हैं। इनमें से प्रथम चार उद्देशकों में विमान-सम्बन्धी कथन किया गया है। पाँचवें से लेकर आठवें उद्देशकों तक चार उद्देशकों में राजधानियों का वर्णन है। नौवें उद्देशक में नैरयिकों का वर्णन है और दसवें उद्देशक में लेश्या के सम्बन्ध में निरूपण है। पढम-बिइय-तइय-चउत्था उद्देसा : . ईसाणलोगपालविमाणाणि प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ उद्देशक : ईशानलोकपाल-विमान ईशानेन्द्र के चार लोकपालों के विमान एवं उनके स्थान का निरूपण २. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी ईसाणस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो कति लोगपाला पण्णत्ता? . गोयमा! चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा सोमे जमे वेसमणे वरुणे। [२ प्र.] राजगृह नगर में, यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा-भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के कितने लोकपाल कहे गए हैं? [२ उ.] हे गौतम! उसके चार लोकपाल कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं—सोम, यम, वैश्रमण और वरुण। ३. एतेसि णं भंते! लोगपालाणं कति विमाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता, तं जहा—सुमणे सव्वतोभद्दे वग्गू सुवग्गू। [३ प्र.] भगवन् ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे गए हैं ? [३ उ.] गौतम! इनके चार विमान हैं; वे इस प्रकार हैं—सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु। ४. कहिणं भंते! ईसाणस्स देविंदस्सदेवरण्णो सोमस्स महारण्णो सुमणे नामं महाविमाणे पण्णत्ते? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाणे णामं कप्पे पण्णत्ते। तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पण्णत्ता, तं जहा अंकवडेंसए फलिहवडिंसए रयणवडेंसए जायरूववडिंसए, मज्झे यऽत्थ ईसाणवडेंसए। तस्स णं
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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