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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जमीन में गाड़े हुए लाखों रुपयों के भण्डार या खजाने निधान कहलाते हैं। पहीणसेउयाइं जिसमें धन को सींचने (या बढ़ाने) वाला मौजूद नहीं रहा। पहीणमग्गाणि इतने पुराने हो गए हैं कि जिनकी तरफ जाने-आने का मार्ग भी नष्ट हो गया है; अथवा उस मार्ग की ओर कोई जाता - आता नहीं । पहीणगोत्तागाराई - जिस व्यक्ति ने ये धन-भण्डार भरे हैं, उसका कोई गोत्रीय सम्बन्धी तथा उसके सम्बन्धी का घर तक अब रहा नहीं ।
॥ तृतीय शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति पत्रांक २००
(ख) भगवती. टीकानुवादयुक्त, खण्ड २, पृ. १२०