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तृतीय शतक : उद्देशक-७]
[३७७ (पुत्रस्थानीय) हैं—अम्ब, अम्बरिष, श्याम, शबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनुष, कुम्भ, बालू, वैतरणी, खरस्वर, और महाघोष ये पन्द्रह विख्यात हैं।
[५] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो सत्तिभागं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता। एमहिड्डिए जाव जमे महाराया।
[५-५] देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल–यम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की है और उसके अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की है। ऐसी महाऋद्धि वाला यावत् यम महाराज है।
विवेचन—यम लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन—प्रस्तुत पाँचवें सूत्र द्वारा शक्रेन्द्र के द्वितीय लोकपाल यम महाराज के विमान-स्थान, उसका परिमाण, आज्ञानुवर्ती देव, उसके द्वारा ज्ञात, श्रुत आदि कार्य, उसके अपत्य रूप से अभिमत देव तथा यम महाराज एवं उसके अपत्य रूप से अभिमत देवों की स्थिति का निरूपण किया गया है।
यमकायिक आदि की व्याख्या यमलोकपाल के परिवाररूप देव'यमकायिक', यमलोकपाल के सासानिक देव 'यमदेव' तथा यमदेवों के परिवाररूप देव 'यमदेवकायिक' कहलाते हैं। प्रेतकायिक-व्यन्तर विशेष। प्रेतदेवकायिक-प्रेतदेवों के सम्बन्धी देव। कंदप्प-अतिक्रीड़ाशील देव (कन्दर्प) आभियोगा=अभियोग आदेशवर्ती अथवा आभियोगिक भावनाओं के कारण आभियोगिक देवों में उत्पन्न ।
अपत्यरूप से अभिमत पन्द्रह देवों की व्याख्या पूर्वजन्म में क्रूर क्रिया करने वाले, क्रूर परिणामों वाले, सतत पापरत कुछ जीव पंचाग्नि तप आदि अज्ञानतप से किये गये निरर्थक देहदमन से आसुरीगति को प्राप्त, ये पन्द्रह परमाधार्मिक असुर कहलाते हैं । ये तीसरी नरकभूमि तक जा कर नारकी जीवों को कष्ट देकर प्रसन्न होते हैं, यातना पाते हुए नारकों को देखकर ये आनन्द मानते हैं। (१) अम्ब-जो नारकों को ऊपर आकाश में ले जाकर छोड़ते हैं, (२)अम्बरीष-जो छुरी आदि से नारकों के छोटे-छोटे, भाड़ में पकने योग्य टुकड़े करते हैं, (३) श्याम-ये काले रंग के व भयंकर स्थानों में नारकों को पटकते एवं पीटते हैं;(४)शबल-जो चितकबरे रंग के व नारकों की आंतें-नसें एवं कलेजे को बाहर खींच लेते हैं। (५)रुद्रनारकों को भाला, बी आदि शस्त्रों में पिरो देने वाले रौद्र-भयंकर असुर (६)उपरुद्र-नारकों के अंगोपांगों को फाड़ने वाले अतिभयंकर असुर ।(७) काल-नारकों को कड़ाही में पकाने वाले, काले रंग के असुर, (८) महाकाल-नारकों के चिकने मांस के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें खिलाने वाले, अत्यन्त काले रंग के असुर;(९)असिपत्र-जो तलवार के आकार के पत्ते वैक्रिय से बना कर नारकों पर गिराते हैं, (१०) धनुष जो धनुष द्वारा अर्धचन्द्रादि बाण फैंक कर नारकों के नाक कान आदि बींध डालते हैं,(११) कुम्भ जो नारकों को कुम्भ या कुम्भी में पकाते हैं, (१२) बालू-वैक्रिय द्वारा निर्मित वज्राकार या कदम्ब पुष्पाकार रेत में नारकों को डालकर चने की तरह
१. (क) भगवती, (टीकानुवाद पं. बेचरदासजी) खण्ड-२, पृ. ११६-११७
(ख) भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक १९८