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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-७] [३७५ अधिक एक पल्योपम और चन्द्र की स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है, तथापि यहाँ ऊपर की बढ़ी हुई स्थिति की विवक्षा न करके एक पल्योपम कही गई है। यम लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन ५. [१] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिढे णामं महाविमाणे पण्णत्ते ? गोयमा! सोहम्मवडिंयस्स महाविमाणस्स दाहिणेणं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई वीईवइत्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो वरसिट्ठे णामं महाविमाणे पण्णत्ते अद्धतेरस जोयणसयसहस्साइं जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहाणी तहेव जाव पासायपंतीओ । [५-१ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल—यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? [५-१ उ.] गौतम! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा-चौड़ा है, इत्यादि सारा वर्णन सोम महाराज के (सन्ध्याप्रभ) विमान की तरह, यावत् (रायपसेणिय में वर्णित) 'अभिषेक' तक कहना चाहिए। इसी प्रकार राजधानी और यावत् प्रासादों की पंक्तियों के विषय में कहना चाहिए। [२] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो जमस्स महारणो इमे देवा आणा० जाव चिट्ठति, तं जहा—जमकाइया ति वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेयकाइया इ वा, पेयदेवयकाइया ति वा, असुरकुमारा असुरकुमारीओ, कंदप्पा निरयवाला आभिओगा जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिगा, तप्पक्खित्ता तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो आणा जाव चिट्ठति। [५-२] देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की आज्ञा, सेवा (उपपात), वचनपालन और निर्देश में रहते हैं, यथा—यमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक प्रेतदेवकायिक, असुरकुमारअसुरकुमारियाँ, कन्दर्प, निरयपाल (नरकपाल), आभियोग; ये और इसी प्रकार के वे सब देव, जो उस (यम) की भक्ति में तत्पर हैं, उसके पक्ष के तथा उससे भरण-पोषण पाने वाले तदधीन भृत्य (भार्य) या उसके कार्यभारवाहक (भारिक) हैं। ये सब यम महाराज की आज्ञा में यावत् रहते हैं। [३] जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाइं इमाइं समुप्पजंति, तं जहा–डिंबा ति वा, डमरा ति वा, कलहा ति वा, बोला ति वा, खारा ति वा, महाजुद्धा ति वा, महासंगामा ति वा, महासत्थनिवडणा ति वा, एवं महापुरिसनिवडणा ति वा, महारुधिरनिवडणा इ वा, १. (क) भगवतीसूत्र (विवेचनयुक्त) भा. २. (पं. घेवरचन्दजी), पृ.७१४ (ख) भगवती, अ. वृत्ति, पत्रांक १९७
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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