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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-६] [३६७ में रहा हुआ मैं राजगृह नगर की विकुर्वणा करके वाराणसी के रूपों को जानता-देखता हूँ।' इस प्रकार उसका दर्शन अविपरीत (सम्यक्) होता है। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है (कि वह तथाभाव से जानता-देखता है।) ८. बीओ वि आलावगो एवं चेव, नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणावेयव्वो, रायगिहे नगरे रूवाइं जाणइ पासइ। [८] दूसरा आलापक भी इसी तरह कहना चाहिए। किन्तु विशेष यह है कि विकुर्वणा वाराणसी नगरी की समझनी चाहिए, और राजगृह नगर में रहकर रूपों को जानता-देखता है, (ऐसा जानना चाहिए।) ९. अणगारे णं भंते! भावियप्पा अमायी सम्मट्ठिी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए रायगिहं नगरं वाणारसिं च नगरि अंतरा य एगं महं जणवयवग्गं समोहए, २ रायगिहं नगरं वाणारसि च नगरि तं च अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणइ पासइ? हंता, जाणइ पासइ। [९ प्र.] भवगन्! अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानलब्धि से, राजगृहनगर और वाराणसी नगरी के बीच में एक बड़े जनपदवर्ग की विकुर्वणा करके उसको जानता-देखता है ? [९ उ.] हाँ (गौतम! वह उस जनपदवर्ग को) जानता-देखता है। १०.[१] से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ ? गोयमा! तहाभावं जाणइ पासइ, णो अन्नहाभावं जाणइ पासइ। [१०-१ प्र.] भगवन् ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता-देखता है ? _[१०-१ उ.] गौतम! वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, परन्तु अन्यथाभाव से नहीं जानता-देखता। [२] से केणढेणं०? गोयमा! तस्स णं एवं भवति–नो खलु एस रायगिहे णगरे, णो खलु एस वाणारसी नगरी, नो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे एस खलु ममं वीरियलद्धी वेउव्वियलद्धी ओहिणाणलद्धी इड्डी जुती जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए, से से दंसणे अविवच्चासे भवति, से तेणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चति–तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नहाभावं जाणति पासति। [१०-२ प्र.] भगवन् ! इसका कारण क्या है ? [११-२ उ.] गौतम! उस अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार के मन में ऐसा विचार होता है
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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