SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छट्ठो उद्देसओः 'नगरं' अहवा अणगारवीरियलद्धी' छठा उद्देशक : 'नगर' अथवा 'अनगारवीर्यलब्धि' वीर्यलब्धि आदि के प्रभाव से मिथ्यादृष्टि अनगार का नगरान्तर के रूपों को जानने देखने की प्ररूपणा १. अणगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छहिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरि समोहए, समोहण्णित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणति पासति ? हंता, जाणइ पासइ। .[१ प्र.] भगवन् ! राजगृह नगर में रहा हुआ मिथ्यादृष्टि और मायी (कषायवान्) भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके क्या तद्गत रूपों को जानता-देखता है ? [१ उ.] हाँ, गौतम! वह (पूर्वोक्त अनगार) उन पूर्वोक्त रूपों को जानता और देखता है। २. [२] से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ पासइ, अन्नहाभावं जाणइ पासइ। [२-१ प्र.] भगवन् ! क्या वह (उन रूपों को) तथाभाव (यथार्थरूप) से जानता-देखता है, अथवा अन्यथाभाव (अयथार्थ रूप) से जानता-देखता है ? [२-१ उ.] गौतम! वह तथाभाव से नहीं जानता-देखता, किन्तु अन्यथाभाव से जानता-देखता __ [२] से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ 'नो तहाभावं जाणइ पासइ, अन्नहाभावं जाणइ पास?' गोयमा! तस्स णं एवं भवति–एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि पासामि, से से दंसणे विवच्चासे भवति, से तेणठेणं जाव पासति। [२-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह तथाभाव से नहीं जानता देखता, किन्तु अन्यथाभाव से जानता देखता है ? [२-२ उ.] गौतम! उस (तथाकथित अनगार) के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy