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________________ (क्षेत्रों) में अस्तित्व की प्ररूपणा ४१०, विविध कालमानों की व्याख्या ४१३, अवसर्पिणी काल ४१४, उत्सर्पिणी काल ४१४, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि एवं पुष्करार्ध में सूर्य के उदय-अस्त तथा दिवस-रात्रि का विचार ४१४, जम्बूद्वीप, लवण समुद्र आदि का परिचय ४१७ । द्वितीय उद्देशक-अनिल ईषत्पुरोवात आदि चतुर्विध वायु की दिशा, विदिशा, द्वीप, समुद्र आदि विविध पहलुओं से प्ररूपणा ४१८, ईषत्पुरोवात आदि चारों प्रकार की वायु के सम्बन्ध में सात पहलू ४२१, द्वीपीय और समुद्रीय हवाएं एक साथ नहीं बहती ४२१, चतुर्विध वायु बहने के तीन कारण ४२२, वायुकाय के श्वासोच्छवास आदि के सम्बन्ध में चार आलापक ४२२, कठिन शब्दों के विशेष अर्थ ४२२, ओदन, कुल्माष और सुरा की पूर्वावस्था और पश्चादवस्था के शरीर का प्ररूपण ४२२, पूर्वावस्था की अपेक्षा से ४२३, पश्चादवस्था की अपेक्षा से ४२३, लोह आदि के शरीर का उनकी पूर्वावस्था और पश्चादवस्था की दृष्टि से निरूपण ४२३, अस्थि आदि तथा अंगार आदि के शरीर का उनकी पूर्वावस्था ओर पश्चादवस्था की अपेक्षा से प्ररूपणा ४२४, अंगार आदि चारों अग्निप्रज्वलित ही विवक्षित ४२५, पूर्वावस्था और अनन्तरावस्था ४२५, लवणसमुद्र की स्थिति, स्वरूप आदि का निरूपण ४२५, लवणसमुद्र की चौड़ाई आदि के सम्बन्ध में अतिदेशपूर्वक निरूपण ४२५, जीवाभिगम में लवणसमुद्र सम्बन्धी वर्णन : संक्षेप में ४२६ । तृतीय उद्देशक-ग्रन्थिका एक जीव द्वारा एक समय में इहभविक एवं परभविक आयुष्यवेदन विषयक अन्य तीर्थक मत निराकरणपूर्वक भगवान् का समाधान ४२७, जाल की गांठों के समान अनेक जीवों के अनेक आयुष्यों की गांठ ४२८. चौबीस दण्डकों तथा चतुर्विध योनियों की अपेक्षा से आयुष्यबन्ध सम्बन्धी विचार ४२९ । चतुर्थ उद्देशक-शब्द छद्मस्थ और केवली द्वारा शब्द श्रवण-सम्बन्धी सीमा की प्ररूपणा ४३२, 'आउडिज्जमाणई' पद की व्याख्या ४३४, कठिन शब्दों की व्याख्या ४३४, छद्मस्थ और केवली के हास्य और औत्सुक्य सम्बन्धी प्ररूपणा ४३४, तीन भंग ४३६, छद्मस्थ और केवली की निद्रा और प्रचला से सम्बन्धित प्ररूपणा ४३६, हरिनैगमेषी द्वारा गर्भापहरण किये जाने के सम्बन्ध में शंका-समाधान ४३७, हरिनैगमेषी देव का संक्षिप्त परिचय ४३८, गर्भसंहरण के चार प्रकारों में से तीसरा प्रकार ही स्वीकार्य ४३९, कठिन शब्दें की व्याख्या ४३९, अतिमुक्तककुमार श्रमण की बालचेष्टा तथा भगवान् द्वारा स्थविर मुनियों का समाधान ४३९, भगवान् द्वारा आविष्कृत सुधार का मनोवैज्ञानिक उपाय ४४१, दो देवों के मनोगत प्रश्न के भगवान् द्वारा प्रदत्त मनोगत उत्तर पर गौतम स्वामी का समाधान ४४१, सात तथ्यों का स्पष्टीकरण ४४४, प्रतिफलित तथ्य ४४५, कठिन शब्दों के विशेष अर्थ ४४५, देवों को संयत, असंयत संयतासंयत न कहकर नो-संयत कथन-निर्देश ४४५, देवों के लिए 'नो-संयत' शब्द उपयुक्त क्यों? ४४६, देवों की भाषा एवं विशिष्ट भाषा : अर्धमागधी ४४६, अर्धमागधी का स्वरूप ४४६, विभिन्न धर्मों की अलग-अलग देवभाषाओं का समावेश अर्धमागधी में ४४७, केवली और छद्मस्थ द्वारा अन्तकर, अन्तिम शरीरी चरमकर्म और चरमनिर्जरा को जानने-देखने के सम्बन्ध में प्ररूपणा ४४७, चरमकर्म एवं चरमनिर्जरा की व्याख्या ४४९, प्रमाण :स्वरूप और प्रकार ४४९, प्रत्यक्ष के दो भेद ४४९, अनुमान के तीन मुख्य प्रकार ४४९, उपमान के दो भेद ४५०, आगम के दो भेद ४५०, [३६]
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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