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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [९-१ उ.] हाँ, गौतम! वह वैसा करने में समर्थ है। [२] से भंते! किं आयड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ ? गोयमा! नो आतिड्ढीए गच्छति, परिड्ढीए गच्छइ। [९-२ प्र.] भगवन् ! क्या वह बलाहक आत्मऋद्धि से गति करता है या परऋद्धि से गति करता
[९-२ उ.] गौतम! वह आत्मऋद्धि से गति नहीं करता, परऋद्धि से गति करता है। [३] एवं नो आयकम्मुणा, परकम्मुणा। नो आयपयोगेणं, परप्पयोगेणं।
[९-३] इसी तरह वह आत्मकर्म (स्वक्रिया) से और आत्मप्रयोग से गति नहीं करता, किन्तु परकर्म से और परप्रयोग से गति करता है।
[४] ऊसितोदयं वा गच्छइ पतोदयं वा गच्छइ।
[९-४] वह उच्छ्रित-पताका अथवा पतित-पताका दोनों में से किसी एक के आकार रूप से गति करता है।
१०. से भंते किं बलाहए, इत्थी ? गोयमा! बलाहए णं से, णो खलु सा इत्थी। एवं पुरिसे, आसे, हत्थी। [१० प्र.] भगवन् ! उस समय क्या वह बलाहक स्त्री है ?
[१० उ.] हे गौतम! वह बलाहक (मेघ) है, वह स्त्री नहीं है। इसी तरह बलाहक पुरुष, अश्व या हाथी नहीं है; (किन्तु बलाहक है।)
.. ११. [१] पभू णं भंते! बलाहए ए महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाइं जोयणाई गमित्तए ?
___जहा इत्थिरूवं तहा भाणियव्वं। णवरं एगओ चक्कवालं पि, दुहओ चक्कवालं पि भाणियव्वं।
[११-१ प्र.] भगवन् ! क्या वह बलाहक, एक बड़े यान (शकट-गाड़ी) के रूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जा सकता है ?
[११-१ उ.] हे गौतम! जैसे स्त्री के सम्बन्ध में कहा, उसी तरह यान के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। परन्तु इतनी विशेषता है कि वह यान के एक ओर चक्र (पहिया) वाला होकर भी चल सकता है और दोनों ओर चक्र वाला होकर भी चल सकता है।
[२] जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीया-संदमाणियाणं तहेव।
[११-२] इसी तरह युग्य, गिल्ली, थिल्ली, शिविका और स्यन्दमानिका के रूपों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए।
विवेचन—बलाहक के रूप-परिणमन एवं गमन की प्ररूपणा—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू.