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तृतीय शतक : उद्देशक-२]
[३२३ [३३-२ उ.] गौतम! जब पुद्गल फैंका जाता है, तब पहले उसकी गति शीघ्र (तीव्र) होती है, पश्चात् उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि महर्द्धिक देव तो पहले भी और पीछे (बाद में) भी शीघ्र
और शीघ्रगति वाला तथा त्वरित और त्वरितगति वाला होता है। अतः इसी कारण से देव, फेंके हुए पुद्गल का पीछा करके यावत् उसे पकड़ सकता है।
३४. जति णं भंते! देवे महिड्डीए जाव अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए। कम्हा णं भंते! सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहत्थि गेण्हित्तए ?
गोयमा! असुरकुमाराणं देवाणं अहेगतिविसए सीहे सीहे चेव, तुरिते तुरिते चेव। उड्डूंगति-विसए अप्पे अप्पे चेव, मंदे मंदे चेव। वेमाणियाणं देवाणं उर्ल्डगतिविसिए सीहे सीहे चेव, तुरिते तुरिते चेव। अहेगतिविसए अप्पे अप्पे चेव, मंदे मंदे चेव।
जावतियं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया उर्दू उप्पति एक्केणं समएणं तं वजे दोहिं, जं वजे दोहिं तं चमरे तीहिं सव्वत्थोवे सक्कस्स देविंदस्स देवरणो उड्डलोयकंडए, अहेलोयकंडए संखेज्जगुणे।
जावतियं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे ओवयति एक्केणं समएणं तं सक्के दोहिं, जं सक्के दोहिं तं वजे तीहिं, सव्वत्थोवे चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो अहेलोयकंडए, उड्डलोयकंडए संखेज्जगुणे।
___ एवं खलु गोयमा! सक्केणं देविंदेणं देवरण्णो चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहत्थि गेण्हित्तए।
[३४ प्र.] भगवन्! महर्द्धिक देव यावत् पीछा करके फेंके हुए पुद्गल को पकड़ने में समर्थ है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को क्यों नहीं पकड़ सका?
[३४ उ.] गौतम! असुरकुमार देवों का नीचे गमन का विषय (शक्ति-सामर्थ्य) शीघ्र-शीघ्र और त्वरित-त्वरित होता है, और उर्ध्वगमन विषय अल्प-अल्प तथा मन्द-मन्द होता है, जबकि वैमानिक देवों का ऊँचे जाने का विषय शीघ्र-शीघ्र तथा त्वरित-त्वरित होता है और नीचे जाने का विषय अल्प-अल्प तथा मन्द-मन्द होता है।
एक समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, जितना क्षेत्र (जितनी दूर) ऊपर जा सकता है, उतना क्षेत्र उतनी दूर ऊपर जाने में वज्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र ऊपर जाने में चमरेन्द्र को तीन समय लगते हैं। (अर्थात्-) देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वलोककण्डक (ऊपर जाने में लगने वाला कालमान) सबसे थोड़ा है, और अधोलोककण्डक उसकी अपेक्षा संख्येयगुणा है।
एक समय में असुरेन्द्र असुरराज चमर जितना क्षेत्र नीचा जा सकता है, उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में शक्रेन्द्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में वज्र को तीन समय लगते हैं। (अर्थात्-) असुरेन्द्र असुरराज चमर का अधोलोककण्डक (नीचे गमन का कालमान) सबसे थोड़ा है और ऊर्ध्वलोककण्डक (ऊँचा जाने का कालमान) उससे संख्येयगुणा है।
इस कारण से हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को पकड़ने