________________
तृतीय शतक : उद्देशक-२]
[३१३ राजधानी की उपपातसभा में यावत् इन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ।
२४. तए णं से चमरे असुरिंदे असुररया अहुणोववन्ने पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तीभावं गच्छइ, तं जहा आहारपज्जत्तीए जाव भास-मणपज्जत्तीए।
[२४] उस समय तत्काल उत्पन्न हुआ असुरेन्द्र असुरराज चमर पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्ति भाव को प्राप्त (पर्याप्त) हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं-आहारपर्याप्ति से यावत् भाषामनःपर्याप्ति तक।
विवेचन–चमरेन्द्र के पूर्वभव से लेकर इन्द्रत्वप्राप्ति तक का वृत्तान्त प्रस्तुत सात सूत्रों में चमरेन्द्र को प्राप्त हुई ऋद्धि आदि के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न का भगवान् द्वारा चमरेन्द्र के पूर्वभव से लेकर इन्द्रत्व प्राप्ति तक वृत्तान्त रूप में कथित समाधान प्रतिपादित है। इस वृत्तान्त का क्रम इस प्रकार है
१. श्री गौतमस्वामी की चमरेन्द्र की ऋद्धि आदि के तिरोहित हो जाने के सम्बन्ध में जिज्ञासा। २. श्री गौतमस्वामी द्वारा चमरेन्द्र को ऋद्धि आदि की प्राप्ति विषयक प्रश्न।
३. भगवान् द्वारा पूरण गृहपति का गृहस्थावस्था से दानामा-प्रव्रज्यावस्था तक का प्रायः तामली तापस से मिलता-जुलता वर्णन।
४. पूरण बालतपस्वी द्वारा प्रव्रज्यापालन और संलेखना की आराधना। ५. उस समय भगवान् का सुंसुमारपुर में एकरात्रिकी महाभिक्षुप्रतिमा ग्रहण करके अवस्थान।
६. इन्द्रविहीन चमरचंचा राजधानी में संल्लेखना-अनशनपूर्वक-मृत्यु-प्राप्त पूरण बालतपस्वी की इन्द्र के रूप में उत्पत्ति और पांच पर्याप्तियों से पर्याप्तता।
दाणामा पव्वज्जा-दानामा या दानमय्या प्रव्रज्या वह कहलाती है, जिनमें दान देने की क्रिया मुख्य हो। इसका रूपान्तर दानमयी अथवा दानिमा (दान से निर्वृत्त-निष्पन्न)। पूरण तापस की प्रवृत्ति में दान की ही वृत्ति मुख्य है।
__ पूरण तापस और पूरण काश्यप-बौद्धग्रन्थ 'मज्झिमनिकाय' में 'चुल्लसारोपमसुत्त' और 'महासच्चकसुत्त' में उस समय बुद्धदेव के समकालीन छह धर्मोपदेशकों (तीर्थंकरों) का उल्लेख है—पूरणकाश्यप, मस्करी गोशालक, अजितकेशकम्बल, पकुद्धकात्यायन, संजय वेलट्ठिपुत्त, निर्ग्रन्थ नातपुत्त (ज्ञातपुत्र)। उनमें से पूरण काश्यप' सम्भवतः तथागत बुद्ध और भगवान् महावीर का समसामयिक यही 'पूरण तापस' हो। बौद्ध पर्व' में भी 'पूरणकाश्यप' नामक प्रतिष्ठित गृहस्थ का उल्लेख मिलता है जो अरण्य में चोरों द्वारा वस्त्रादि लूटे जाने से नग्न होकर विरक्त रहने लगा था। उसकी विरक्ति और निःस्पृहता देखकर कहते हैं, उसके ८० हजार अनुयायी हो गए थे।
१. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १७४
(ख) श्रीमद् भगवतीसूत्र (टीकानुवाद, पं. बेचरदासजी), खण्ड २. पृ.६१ २. (क) श्रीमद् भगवतीसूत्र (टीकानुवादसहित) (पं. बेचरदासजी) खण्ड २, पृ.५५-५६ (ख) मज्झिमनिकाय में चुल्लसारोपमसुत्त ३०, पृ.१३९, महासच्चकसुत्त ३६, पृ. १७२,
बौद्धपर्व प्र.१०, पृ. १२७