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तृतीय शतक : उद्देशक-२]
[३११ गृहपति रहता था। वह आढ्य और दीप्त था। यहाँ तामली की तरह 'पूरण' गृहपति की सारी वक्तव्यता जान लेनी चाहिए। (उसने भी समय आने पर किसी समय तामली की तरह विचार करके अपने ज्येष्ठपुत्र को कुटुम्ब का सारा भार सौंप दिया) विशेष यह है कि चार खानों (पुटकों) वाला काष्ठमय पात्र (अपने हाथ से) बना कर यावत् विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप चतुर्विध आहार बनवा कर ज्ञातिजनों आदि को भोजन करा कर तथा उनके समक्ष ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपकर यावत् स्वयमेव चार खानों वाले काष्ठपात्र को लेकर मुण्डित होकर 'दानामा' नामक प्रव्रज्या अंगीकार करने का (मनोगत संकल्प किया) यावत् तद्नुसार प्रव्रज्या अंगीकार की।)
२०. पव्वइए वि य णं समाणे तं चेव, जाव आयावणभूमीओ पच्चोरुभइ पच्चोरुभित्ता समयेव चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहयं गहाय बेभेले सन्निवेसे उच्च-नीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडेत्ता 'जं मे पढमे पुडए पडइ कप्पइ मे तं पंथियपहियाणं दलइत्तए, जं मे दोच्चे पुडए पडइ कप्पइ मे तं काक-सुणयाणं दलइत्तए, जं मे तच्चे पुडए पडइ कप्पइ मे तं मच्छ-कच्छभाणं दलइत्तए, जं मे चउत्थे पुडए पडइ कप्पइ मे तं अप्पणा आहारं आहारित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, २ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए तं चेव निरवसेसं जाव जं से चउत्थे पुडए पडइ तं अप्पणा आहारं आहारेइ।
| प्रवजित हो जाने पर उसने पूर्ववर्णित तामली तापस की तरह सब प्रकार से तपश्चर्या की, आतापना भूमि में आतापना लेने लगा, इत्यादि सब कथन पूर्ववत् जानना; यावत् [छट्ठ (बेले के तप) के पारणे के दिन] वह (पूरण तापस) आतापना भूमि से नीचे उतरा। फिर स्वयमेव चार खानों वाला काष्ठमय पात्र लेकर 'बेभेल' सन्निवेश में ऊँच, नीच और मध्यम कुलों के गृहसमुदाय से भिक्षा-विधि से भिक्षाचरी करने के लिए घूमा। भिक्षाटन करते हुए उसने इस प्रकार का विचार किया मेरे भिक्षापात्र के पहले खाने में जो कुछ भिक्षा पडेगी उसे मार्ग में मिलने वाले पथिकों को दे देना है, मेरे (पात्र के) दूसरे खाने में जो कुछ (खाद्यवस्तु) प्राप्त होगी, वह मुझे कौओं और कुत्तों को दे देनी है, जो (भोज्यपदार्थ) मेरे तीसरे खाने में आएगा, वह मछलियों और कछुओं को दे देना है और चौथे खाने में जो भिक्षा प्राप्त होगी, उसका स्वयं आहार करना है।
[इस] प्रकार भलीभांति विचार करके कल (दूसरे दिन) रात्रि व्यतीत होने पर प्रभातकालीन प्रकाश होते ही—यहाँ सब वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए यावत् वह दीक्षित हो गया, काष्ठपात्र के चौथे खाने में जो भोजन पड़ता, उसका आहार स्वयं करता है।
२१. तए णं से पूरणे बालतवस्सी तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं तं चेव जाव बेभेलस्स सनिवेसस्स मझमज्झेणं निग्गच्छति, २ पाउयकुंडियमादीयं उवकरणं चउप्पुडयं च दारुमयं पडिग्गहयं एगंतमंते एडेइ, २ बेभेलस्स सन्निवेसस्स दाहिणपुरथिमे दिसीभागे अद्धनियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाझूसणाझूसिए भत्त-पाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे।
[२१] तदनन्तर पूरण बालतपस्वी उस उदार, विपुल, प्रदत्त और प्रगृहीत बालतपश्चरण के