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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२] [३०५ [५ प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों का (अपने स्थान से) अधोगमन-विषयक (सामर्थ्य) [५ उ.] हाँ, गौतम! (उनमें अपने स्थान से नीचे जाने का सामर्थ्य) है। ६. केवतिए च णं भंते! पभू ते असुरकुमाराणं देवाणं अहेगतिविसए पण्णत्ते ? गोयमा! जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, तच्चं पुण पुढविं गता य गमिस्संति य। [६ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों का (अपने स्थान से) अधोगमन-विषयक सामर्थ्य कितना (कितने भाग तक) है ? [६ उ.] गौतम! सप्तमपृथ्वी तक नीचे जाने की शक्ति उनमें है। (किन्तु वे वहाँ तक कभी गए नहीं, जाते नहीं और जाएँगे भी नहीं) वे तीसरी पृथ्वी (बालुकाप्रभा) तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे। ७. किंपत्तियं णं भंते ! असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गता य, गमिस्संति य? गोयमा! पुव्ववेरियस्स वा वेदणउदीरणयाए, पुव्वसंगतियस्स वा वेदणउंवसामणयाए । एवं खलु असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गता य, गमिस्संति य। [७ प्र.] भगवन् ! किस प्रयोजन (निमित्त या कारण) से असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गये हैं, (जाते हैं) और भविष्य में जायेंगे ? [७ उ.] हे गौतम! अपने पूर्व शत्रु को (असाता वेदन भड़काने)—दुःख देने अथवा अपने पूर्व साथी (मित्रजन) की वेदना का उपशमन करके (दुःख-निवारण कर सुखी बनाने) के लिए असुरकुमार देव तृतीय पृथ्वी तक गये हैं, (जाते हैं,) और जायेंगे। ८. अत्थि णं भंते! असुरकुमाराणां देवाणं तिरियं गतिविसए पण्णत्ते ? हंता, अत्थि। [८ प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों में तिर्यग् (तिरछे) गमन करने का (सामर्थ्य) कहा गया है ? [८ उ.] हाँ, गौतम! (असुरकुमार देवों में अपने स्थान से तिर्यग्गमन-विषयक सामर्थ्य) है। ९. केवतियं च णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पण्णत्ते ? गोयमा! जाव असंखेज्जा दीव-समुद्दा, नंदिस्सरवरं पुण दीवं गता य, गमिस्संति य। [९ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों में (अपने स्थान से) तिरछा जाने की कितनी (कहाँ तक) शक्ति है ? [९ उ.] गौतम! असुरकुमार देवों में (अपने स्थान से) यावत् असंख्येय द्वीप-समुद्रों तक (तिरछा गमन करने का सिर्फ सामर्थ्य है;) किन्तु वे नन्दीश्वर द्वीप तक गए हैं, (जाते हैं,) और भविष्य में जायेंगे।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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