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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [३०१ [६४ प्र.] भगवन्! वह (सनत्कुमारेन्द्र) उस देवलोक से आयु क्षय (पूर्ण) होने के बाद, यावत् कहाँ उत्पन्न होगा? [६४ उ.] हे गौतम! सनत्कुमारेन्द्र उस देवलोक से च्यवकर (आयुष्य पूर्ण कर) महाविदेह वर्ष (क्षेत्र) में, (जन्म लेकर वहीं से) सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है !' (यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरण करने लगे।) विवेचन सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता आदि, तथा स्थिति एवं सिद्धि के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू.६२ से ६४ तक) में सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता-अभवसिद्धिकता, सम्यग्दृष्टित्व-मिथ्यादृष्टित्व, परित्तसंसारित्व-अनन्तसंसारित्व, सुलभबोधिता-दुर्लभबोधिता, विराधकताआराधकता, एवं चरमता-अचरमता आदि प्रश्न उठा कर, इनमें से उसके प्रशस्तपदभागी होने के कारण की तथा उसकी स्थिति एवं भविष्य में सिद्धि-प्राप्ति से सम्बन्धित सैद्धान्तिक दृष्टि से प्ररूपणा की गई है। कठिन शब्दों के विशेषार्थ भवसिद्धिए' जो भविष्य में सिद्धि-मुक्ति प्राप्त कर लेगा वह भवसिद्धिक होता है। 'सम्मट्ठिी' सम्यग्दृष्टि—जीवादि नौ तत्त्वों पर निर्दोष श्रद्धावान्। परित्तसंसारए—जिसका संसारपरिभ्रमण परिमित-सीमित हो गया हो, आराहए-ज्ञानादि का आराधक। चरिमे जिसका अब अन्तिम एक ही भव शेष रहा हो, अथवा, जिसका यह चरम-अन्तिम देवभव हो, पत्थकामए-पथ्यकामी, पथ्य का अर्थ है-दुःख से बचना, उसका इच्छुक । हियकामए-हितकामी। हित का अर्थ है-सुख की कारणरूप वस्तु। १ तृतीय शतक के प्रथम उद्देशक की संग्रहणीगाथाएँ ६५. गाहाओ-छट्ठट्ठम मासो अद्धमासे वासाइं अट्ठ छम्मासा । 'तीसग-कुरुदत्ताणं तव भत्तपरिण्ण परियाओ ॥१॥ उच्चत्त विमाणाणं पादुब्भव पेच्छणा य संलावे । , किच्च विवादुप्पत्ती सणंकुमारे य भवियत्तं ॥२॥ . मोया समत्तार ॥ तइए सए : पढमो उद्देसो समत्तो॥ गाथाओं का अर्थ (भावार्थ—इस प्रकार है-) तिष्यक श्रमण का तप छट्ठ-छट्ठ (निरन्तर बेला-बेला) था और उसका अनशन एक मास का था। कुरुदत्तपुत्र श्रमण का तप अट्ठम१. (क) भगवतीसूत्र प्रमेयचन्द्रिका टीका, हिन्दीगुर्जरभाषानुवादयुक्त भा. ३, पृ. २९९ (ख) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १६९ २. इस उद्देशक में वर्णित विषयों का निरूपण भगवान् ने 'मोका नगरी' में किया था, इसलिए इस उद्देशक का एक नाम 'मोका' भी रखा गया है। वर्तमान में पटना के निकट 'मोकामा घाट' नामक स्थान है, सम्भव है, वही प्राचीन मोका नगरी हो। सं.
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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