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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र महाऋद्धि वाला है; इत्यादि उसकी अग्रमहिषियों तक का समग्र वर्णन (यहाँ कहना चाहिए) । हे गौतम! यह कथन सत्य है। हे गौतम! मैं भी इसी तरह कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूं, और प्ररूपित करता हूँ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर महाऋद्धिशाली है, इत्यादि उसकी अग्रमहिषियों तक का समग्र वर्णनरूप द्वितीय गम (आलापक) यहाँ कहना चाहिए। (इसलिए हे गौतम! द्वितीय गौतम अग्निभूति द्वारा कथित) यह बात सत्य है । '
९. सेवं भंते २० तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे समणे भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, २ जेणेव दोच्चे गोयमे अग्गिभूती अणगारे तेणेव उवागच्छइ, २ दोच्चं गोयमं अग्गिभूतिं अणगारं वंदइ नम॑सति, २ एयमट्ठे सम्मं विणएणं भुज्जो २ खामेति ।
[९] 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है; (जैसा आप फरमाते हैं) भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया और फिर जहाँ द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार थे, वहाँ उनके निकट आए। वहाँ आकर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार को वन्दन-नमस्कार किया और पूर्वोक्त बात के लिए (उनकी कही हुई बात नहीं मानी थी, इसके लिए) उनसे सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की।
१०. तए णं से दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अण० तच्चेणं गो० वायुभूइणा अण० एयमट्ठ सम्मं विणणं भुज्जो २ खामिए समाणे उट्ठाए उट्ठेइ, २ तच्चेणं गो० वायुभूइणा अण० सद्धिं जेणेव समणे भगवं० महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणं भगवं०, वंदइ० २ जाव पज्जुवासए । [१] तदनन्तर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार उस पूर्वोक्त बात के लिए तृतीय गौतम वायुभूति के साथ सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक क्षमायाचना कर लेने पर अपने उत्थान से उठे और तृतीय गौतम वायुभूति अनगार के साथ वहाँ आए, जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे । वहाँ उनके निकट आकर उन्हें (श्रमण भगवान् महावीर को) वन्दन - नमस्कार किया, यावत् उनकी पर्युपासना करने लगे। विवेचन—चमरेन्द्र और उसके अधीनस्थ देवों की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणाशक्ति प्रस्तुत आठ सूत्रों (३ से १० तक) में चमरेन्द्र और उसके अधीनस्थ सामानिक, त्रायस्त्रिशक, लोकपाल एवं अग्रमहिषियों की ऋद्धि, द्युति, बल, यश, सौख्य, प्रभाव एवं विकुर्वणाशक्ति के विषय में अग्निभूति गौतम की शंकाओं का समाधान अंकित है, साथ ही वायुभूति गौतम की इस समाधान के प्रति अश्रद्धा अप्रतीति एवं अरुचि होने पर श्रमण भगवान् महावीर द्वारा पुनः समाधान और वायुभूति द्वारा क्षमायाचना का निरूपण है ।
'गौतम' - सम्बोधन—–—–—यहाँ ' इन्द्रभूति गौतम' की तरह अग्निभूति और वायभूति गणधर को भी भगवान् महावीर ने 'गौतम' शब्द से सम्बोधित किया है, उसका कारण यह है कि भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर अन्तेवासी ( पट्टशिष्य) थे, उनमें से प्रथम इन्द्रभूति, द्वितीय अग्निभूति और तृतीय वायुभूति थे। ये तीनों ही अनगार सहोदर भ्राता थे । ये गुब्बर (गोवर) ग्राम में गौतम गोत्रीय विप्र श्री वसुभूति और पृथिवीदेवी के पुत्र थे। तीनों ने भगवान् का शिष्यत्व स्वीकार लिया था। तीनों के गौतमगोत्रीय होने के