________________
तइयं सयं : तृतीय शतक
संग्रहणी गाथा तृतीय शतक की संग्रहणी गाथा
केरिस विउव्वणा १ चमर २ किरिय ३ जाणित्थि ४-५ नगर ६ पाला य ७।
अहिवति ८ इंदिय ९ परिसा १० ततियम्मि सते दसुद्देसा॥१॥ [१] तृतीय शतक में दस उद्देशक हैं। उनमें से प्रथम उद्देशक में चमरेन्द्र की विकुर्वणा-शक्ति (विविध रूप करने–बनाने की शक्ति) कैसी है ? इत्यादि प्रश्नोत्तर हैं, दूसरे उद्देशक में चमरेन्द्र के उत्पात का कथन है। तृतीय उद्देशक में क्रियाओं की प्ररूपणा है। चतुर्थ में देव द्वारा विकुर्वित यान को साधु जानता है? इत्यादि प्रश्नों का निर्णय है। पाँचवें उद्देशक में साधु द्वारा (बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके) स्त्री आदि के रूपों की विकुर्वणा-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। छठे में नगर-सम्बन्धी वर्णन है। सातवें में लोकपालविषयक वर्णन है। आठवें में अधिपति-सम्बन्धी वर्णन है। नौवें उद्देशक में इन्द्रियों के सम्बन्ध में निरूपण है और दसवें उद्देशक में चमरेन्द्र की परिषद् (सभा) का वर्णन है।
पढमो उद्देसओ : विउव्वणा [पढमो उद्देसो 'मोया केरिस विउव्वणा']
प्रथम उद्देशक : विकुर्वणा प्रथम उद्देशक का उपोद्घात
२. तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नाम नगरी होत्था। वण्णओ। तीसे णं मोयाए नगरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे णं नंदणे नामं चेतिए होत्था। वण्णओ। तेणं कालेणं २ सामो समोसढे परिसा निग्गच्छति। पडिगता परिसा।
[२] उस काल उस समय में 'मोका' नाम की नगरी थी। उसका वर्णन करना चाहिए। उस मोका नगरी के बाहर उत्तरपूर्व के दिशाभाग में, अर्थात्-ईशानकोण में नन्दन नाम का चैत्य (उद्यान) था। उसका वर्णन करना चाहिए। उस काल उस समय में (एकदा) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। (श्रमण भगवान् महावीर् का आगमन जान कर) परिषद् (जनता) (उनके दर्शनार्थ) निकली। (भगवान् का धर्मोपदेश सुनकर) परिषद् वापस चली गई।