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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१०] [२५१ १७. इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति ? असंखेज्जइभागं फुसइ ? संखिज्जे भागे फुसति ? असंखेजे भागे फुसति ? सव्वं फुसति ? गोयमा! णो संखेज्जइभागं फुसति, असंखेज्जइभागं फुसइ, णो संखेज्जे०, णो असंखेजे०, नो सव्वं फुसति। । [१७ प्र.] भगवन्! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, क्या धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श करती है या असंख्यात भाग को स्पर्श करती है, अथवा संख्यात भागों को स्पर्श करती है या असंख्यात भागों को स्पर्श करती है अथवा समग्र को स्पर्श करती है ? [१७ उ.] गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी,धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श नहीं करती, अपितु असंख्यात भाग को स्पर्श करती है, इसी प्रकार संख्यात भागों को, असंख्यात भागों को या समग्र धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करती। १८. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति ?01 जहा रयणप्पभा (सु. १७) तहा घणोदहि-घणवात-तणुवाया वि। [१८ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधि, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है; यावत् समग्र धम्पस्तिकाय को स्पर्श करता है ? इत्यादि पृच्छा। [१८ उ.] हे गौतम! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के लिए कहा गया है, उसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि के विषय में कहना चाहिए और उसी तरह घनवात और तनुवात के विषय में भी कहना चाहिए। १९. [१] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति, असंखेज्जइभागं फुसइ जाव (सु. १७) सव्वं फुसइ। गोयमा! संखेज्जइभागं पुसइ,णो असंखेज्जइभागंपुसइ, नोसंखेज्जे०,नो असंखेज्जे०, नो सव्वं फुसइ । [१९-१ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अवकाशान्तर क्या धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, अथवा असंख्येय भाग को स्पर्श करता है ? यावत् सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ? [१९-१ उ.] गौतम! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अवकाशान्तर, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, किन्तु असंख्येय भाग को, संख्येय भागों को, असंख्येय भागों को तथा सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करता। [२] ओवासंतराइं सव्वाइं जहा रयणप्पभाए । [१९-२] इसी तरह समस्त अवकाशान्तरों के सम्बन्ध में कहना चाहिए।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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