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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-७] [२३५ हैं। उपपात भवनपतियों का उपपात लोक के असंख्यातवें भाग में होता है। मारणान्तिकसमुद्घात की अपेक्षा और स्थान की अपेक्षा वे लोक के असंख्येय भाग में ही रहते हैं, क्योंकि उनके७ करोड़ ७२ लाख भवन लोक के असंख्येय भाग में ही हैं। इसी तरह असुरकुमार आदि के विषय में तथा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, सभी देवों के स्थानों का कथन करना चाहिए, यावत् सिद्ध भगवान् के स्थानों का वर्णन करने वाले 'सिद्धगण्डिका' नामक प्रकरण तक कहना चाहिए। वैमानिक-प्रतिष्ठान आदि का वर्णन जीवाभिगमसूत्र के वैमानिक उद्देशक में कथित वर्णन संक्षेप में इस प्रकार है-(१) प्रतिष्ठान सौधर्म और ईशान कल्प में विमान की पृथ्वी : घनोदधि के आधार पर टिकी हुई है। इससे आगे के तीन घनोदधि और वात पर प्रतिष्ठित हैं। उससे आगे के सभी ऊपर के विमान आकाश के आधार पर प्रतिष्ठित हैं। (२) बाहल्य (मोटाई) और उच्चत्व सौधर्म और ईशान कल्प में विमानों की मोटाई २७०० योजन और ऊँचाई ५०० योजन है। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में मोटाई २६०० योजन और ऊँचाई ६०० योजन है। ब्रह्मलोक और लान्तक में मोटाई २५०० योजन, ऊँचाई ७०० योजन है। महाशुक्र और सहस्रार कल्प में मोटाई २४०० योजन, ऊँचाई ८०० योजन है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोकों में मोटाई २३०० योजन, ऊँचाई ९०० योजन है। नवग्रैवेयक के विमानों की मोटाई २२०० योजन और ऊँचाई १००० योजन है। पंच अनुत्तर विमानों की मोटाई २१०० योजन और ऊँचाई ११०० योजन है।(३)संस्थान दो प्रकार के (१) आवलिकाप्रविष्ट और (२) आवलिकाबाह्य । वैमानिक देव आवलिका प्रविष्ट (पंक्तिबद्ध) तीनों संस्थानों वाले हैं—वृत्त (गोल), त्र्यंस (त्रिकोण) और चतुरस्त्र (चतुष्कोण), आवलिकाबाह्य नाना प्रकार के संस्थानों वाले हैं। इसी तरह विमानों के प्रमाण, रंग, कान्ति, गन्ध आदि का सब वर्णन जीवाभिगमसूत्र से जान लेना चाहिए। ॥द्वितीय शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त॥ १. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति पत्रांक १४२-१४३ (ख) प्रज्ञापनासूत्र स्थानपद-द्वितीय पद; पृ. ९४ से १३० तक २. जीवाभिगमसूत्र प्रतिपत्ति ४, विमान-उद्देशक २, सू. २०९-१२
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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