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________________ २३०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एवमाइक्खंति जाव सव्वं नेयव्वं । अहं पुण गोतमा! एवमाइक्खामि भा० पं० प०—एवं खलु रायगिहस्स नगरस्स बहिया वेभारस्स पव्वतस्स अदूरसामंते एत्थ णं महातवोवतीरप्पभवे नामं पासवणे पण्णत्ते पंच धणुसताणि आयाम-विक्खंभेणं नाणादुमसंडमंडिउद्देसे सस्सिरीए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहवे उसिणजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववज्जति तव्वतिरित्ते वि य णं सया समितं उसिणे २ आउयाए अभिनिस्सवति–एस णं गोतमा! महातवोवतीरपभवे पासवणे, एस णं गोतमा! महातवोवतीरप्पभवस्स पासवणस्स अट्ठे पण्णत्ते। सेवं भंते! २ त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति। ॥बितीय सए पंचमो उद्देसो समत्तो॥ [२७ प्र.] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि 'राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के नीचे एक महान् (बड़ा भारी) पानी का हृद (कुण्ड) है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई (आयाम-विष्कम्भ) अनेक योजन है। उसका अगला भाग (उद्देश) अनेक प्रकार के वृक्षसमूह से सुशोभित है, वह सुन्दर (श्रीयुक्त) है, यावत् प्रतिरूप (दर्शकों की आँखों को सन्तुष्ट करने वाला) है। उस हद में अनेक उदार मेघ संस्वेदित (उत्पन्न) होते (गिरते) हैं, सम्मूर्छित होते (बरसते) हैं। इसके अतिरिक्त (कुण्ड भर जाने के उपरान्त) उसमें से सदा परिमित (सीमित) गर्म-गर्म जल (अप्काय) झरता रहता है।' भगवन् ! (अन्यतीर्थिकों का) इस प्रकार का कथन कैसा है ? क्या यह (कथन) सत्य है ? [२७ उ.] हे गौतम! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, और प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर के बाहर....यावत्....गर्म-गर्म जल झरता रहता है, यह सब (पूर्वोक्त वर्णन) वे मिथ्या कहते हैं; किन्तु हे गौतम! मैं इस प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूं और प्ररूपणा करता हूँ, कि राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के निकटवर्ती एक महातपोपतीर-प्रभव नामक झरना (प्रस्रवण) (बताया गया ) है। वह लम्बाई-चौड़ाई में पांच-सौ धनुष है। उसके आगे का भाग (उद्देश) अनेक प्रकार के वृक्ष-समूह से सुशोभित है, सुन्दर है, प्रसन्नताजनक है दर्शनीय है, रमणीय (अभिरूप) है और प्रतिरूप (दर्शकों के नेत्रों को सन्तुष्ट करने वाला) है। उस झरने में बहुत-से उष्णयोनिक जीव और पुद्गल जल के रूप में उत्पन्न होते हैं, नष्ट होते हैं, च्यवते (च्युत होते) हैं और उपचय (वृद्धि) को प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त उस झरने में से सदा परिमित गर्म-गर्म जल (अप्काय) झरता रहता है। हे गौतम! यह महातपोपतीर-प्रभव नामक झरना है, और हे गौतम! यही महातपोपतीरप्रभव नामक झरने का अर्थ (रहस्य) है। १. वर्तमान में भी यह गर्म पानी का कुण्ड राजगृह में वैभरिगिरि के निकट प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। वास्तव में यह पर्वत में से झर-झर कर झरने के रूप में ही आकर इस कुण्ड में गिरता है। कुण्ड स्वाभाविक नहीं है, यह तो सरकार द्वारा बना दिया गया है। बहुत से यात्री या पर्यटक आकर धर्मबुद्धि से इसमें नहाते हैं,कईचर्मरोगों को मिटाने के लिए इसमें स्नान करते हैं। इटली के आरमिआ के निकट भी एक ऐसा झरना है, जिसमें सर्दियों में गर्म पानी होता है और गर्मियों में बर्फ जैसा ठंडा पानी रहता है। (देखें-संसार के १५०० अद्भुत आश्चर्य,भाग २ पृ.१५९)-सं.
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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