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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-५] [२२१ तवे वोदाणफले। । [१६] तदनन्तर वे श्रमणोपासक स्थविर भगवन्तों से धर्मोपदेश सुनकर एवं हृदयंगम करके बड़े हर्षित और सन्तुष्ट हुए, यावत् उनका हृदय खिल उठा और उन्होंने स्थविर भगवन्तों की दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा की, यावत् (पूर्वोक्तानुसार) तीन प्रकार की उपासना द्वारा उनकी पर्युपासना की और फिर इस प्रकार पूछा [प्र.] भगवन् ! संयम का क्या फल है ? भगवन् ! तप का क्या फल है ? [उ.] इस पर उन स्थविर भगवन्तों ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-'हे आर्यो! संयम का फल अनाश्रवता (आवरहितता-संवरसम्पन्नता) है। तप का फल व्यवदान (कर्मों को विशेषरूप से काटना या कर्मपंक से मलिन आत्मा को शुद्ध करना) है।' १७. [१] तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वदासी-जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले किंपत्तियं णं भंते! देवा देवलोएसु उववज्जति ? [१७-१ प्र.] (स्थविर भगवन्तों से उत्तर सुनकर) श्रमणोपासकों ने उन स्थविर भगवन्तों से (पुनः) इस प्रकार पूछा-'भगवन्! यदि संयम का फल अनाश्रवता है और तप का फल व्यवदान है तो देव देवलोकों में किस कारण से उत्पन्न होते हैं ?' [२] तत्थ णं कालियपुत्ते नाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी-पुव्वतवेणं अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जति। _[१७-२ उ.] (श्रमणोपासकों का प्रश्न सुनकर) उन स्थविरों में से कालिकपुत्र नामक स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से यों कहा-'आर्यो! पूर्वतप के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।' [३] तत्थ णं मेहिले नाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी-पुव्वसंजमेणं अज्जो! देवा देवलोएसु उववति। [१७-३ उ.] उनमें से मेहिल (मेधिल) नाम के स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा—'आर्यो! पूर्व-संयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।' [४] तत्थ णं आणंदरक्खिए णाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी कम्मियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जति। [१७-४ उ.] फिर उनमें से आनन्दरक्षित नामक स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा-'आर्यो! कर्मिता (कर्मों की विद्यमानता या कर्म शेष रहने) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।' [५] तत्थ णं कासवे णाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी-संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववजंति, पुव्वतवेणं पुव्वसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जति। सच्चे णं एस अट्ठे, नो चेव णं आतभाववत्तव्वयाए। [१७-५ उ.] उनमें से काश्यप नामक स्थविर ने उन श्रमणोपासकों से यों कहा-आर्यो! संगिता (द्रव्यादि के प्रति रागभाग-आसक्ति) के कारण देव देवलाकों में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार हे
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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