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________________ २१८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एगदिसा-भिमुहा णिज्जायंति। । [१३] तदनन्तर तुंगिकानगरी के शृंगाटक (सिंघाड़े के आकार वाले त्रिकोण) मार्ग में, त्रिक (तीन मार्ग मिलते हैं, ऐसे) रास्तों में, चतुष्क पथों (चार मार्ग मिलते हैं, ऐसे चौराहों) में तथा अनेक मार्ग मिलते हैं, ऐसे मार्गों में, राजमार्गों में एवं सामान्य मार्गों में (सर्वत्र उन स्थविर भगवन्तों के पदार्पण की) बात फैल गई। जनता एक ही दिशा में उन्हें वन्दन करने के लिए जाने लगी है। १४. तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठा जाव' सद्दावेंति, २ एवं वदासी एवं खलु देवाणुप्पिया! पासावच्चेज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना जाव अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णाम-गोत्तस्स वि सवणयाए किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? जाव गहणयाए ?, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! थेरे भगवंते वंदामो नमंसामो जाव पज्जुवासामो, एयं णं इहभवे वा परभवे वा जाव' अणुगामियत्ताए भविस्सतीति कटु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमढं पडिसुणेति, २ जेणेव सयाई सयाइं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति, २ ण्हाया कयबलिकम्मा कतकोउयमंगलपायच्छित्ता, सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवराइं परिहिया, अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा सएहिं २ गेहेहिंतो पडिनिक्खमंति, २ त्ता एगतओ मेलायंति, २ पायविहारचारेणं तुंगियाए नगरीए मझंमज्झेणं णिग्गच्छंति, २ जेणेव पुष्फवतीए चेतिए तेणेव उवागच्छंति, २ थेरे भगवंते पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति, तं जहा–सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणताए १ अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणताए २ एगसाडिएणं उत्तरासंग-करणेणं ३ चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं ४ मणसो एगत्तीकरणेणं ५; जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, २ तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, २ जा तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासेंति , तं जहा–काइ० वाइ० माण। तत्थ काइयाए-संकुचियपाणि-पाए सुस्सूसमाणे १. 'जाव' पद यहाँ निम्नोक्त पाठ-सूचक है-'चित्तमाणंदिआ णंदिआ पीइमणा परमसोमणसिआ हरिसवसविसप्पमाणहिअया धाराहयमीवसुरहिकुसुमचंचुमालइयतणू ऊससियरोमकूवा।' २. यहाँ 'जाव' पद जातिसंपन्ना' (सू. १२) से लेकर 'अहापडिरूवं' तक का बोधक है। ३. 'जाव' पद से यहाँ निम्नोक्त पाठ समझें-'एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणताए किमंग पुण विउलस्स अस्थस्स गहणयाए।' ४. 'जाव' पद निम्नोक्त पाठ का सूचक है-'सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जवासामो।' ५. 'जाव' पद यहाँ निम्नोक्त पाठ का सूचक है-'हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए।' ६. 'जाव' पद से यह पाठ समझना चाहिए-'वंदंति णमंसंति णच्चासन्ने णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा!' ७. 'तं जहा' से लेकर 'पज्जुवासंति' तक का पाठ अन्य प्रतियों में नहीं है। औपपातिकसूत्र से उद्धृत किया हुआ प्रतीत होता है।-'तं जहा-काइयाएवाइयाए माणसियाए।काइयाए ताव संकुइअग्गहत्थ-पाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइवाइयाए जंजं भगवं वागरेइ एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंद्धिमेयं भंते! इच्छिअमेअंभंते! पडिच्छिअमेअंभंते! इछियपडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भेवदह अपडिकलमाणे पज्जुवासति। माणसियाए महया संवेगं जणइत्ता तिव्वधम्माणुरागरत्तो पज्जुवासइ।'
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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