________________
द्वितीय शतक : उद्देशक-५]
[२११ और पुरुषवेद दोनों परस्पर विरुद्ध हैं, अत: ये दोनों एक समय में एक साथ नहीं वेदे जाते। उदकगर्भ आदि की कालस्थिति का विचार
२. उदगगब्भे णं भंते! 'उदगगब्भे'त्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। [२ प्र.] भगवन् ! उदकगर्भ (पानी का गर्भ) उदकगर्भ के रूप में कितने समय तक रहता है ? [२ उ.] गौतम! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक उदकगर्भ उदकगर्भरूप में रहता
३. तिरिक्खजोणियगब्भे णं भंते! 'तिरिक्खजोणियगब्भे' त्ति कालओ केवच्चिरं होति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अट्ठ संवच्छराई। [३ प्र.] भगवन् ! तिर्यग्योनिकगर्भ कितने समय तक तिर्यग्योनिकगर्भरूप में रहता है ?
[३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट आठ वर्ष तक तिर्यग्योनिकगर्भ तिर्यग्योनिकगर्भरूप में रहता है।
४. मणुस्सीगब्भे णं भंते! 'मणुस्सीगब्भे' त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराई। [४ प्र.] भगवन् ! मानुषीगर्भ, कितने समय तक मानुषीगर्भरूप में रहता है ?
[४ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह वर्ष तक मानुषीगर्भ मानुषीगर्भरूप में रहता है।
५. काय-भवत्थे णं भंते ! 'काय-भवत्थे' त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं,उक्कोसेणं चउव्वीसं संवच्छराई।
[५ प्र.] भगवन्! काय-भवस्थ कितने समय तक काय-भवस्थ रूप में रहता है ? __ [५ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चौबीस वर्ज़ तक काय-भवस्थ काय-भवस्थ के रूप में रहता है।
६. मणुस्स-पंचेंदियतिरिक्खजोणियबीए णं भंते! जोणिब्भूए केवतियं कालं संचिट्ठइ?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
[६ प्र.] भगवन् ! मानुषी और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्ची-सम्बन्धी योनिगत बीज (वीर्य) योनिभूतरूप १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १३२