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चउत्थो उद्देसो : इंदिय चतुर्थ उद्देशक : इन्द्रिय
इन्द्रियाँ और उनके संस्थानादि से सम्बन्धित वर्णन
- कति णं भंते! इंदिया पण्णत्ता ?
१ –
गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता, तं जहा पढमिल्लो इंदियउद्देसओ नेयव्वो, संठाणं बाल्लं पोहत्तं जाव अलोगो ।
॥ बित्तीय सए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥
[१ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ?
[१ उ.] गौतम ! पाँच इन्द्रियाँ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं— श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें, इन्द्रियपद का प्रथम उद्देशक कहना चाहिए । उसमें कहे अनुसार इन्द्रियों का संस्थान, बाहल्य (मोटाई), चौड़ाई, यावत् अलोक (द्वार) तक के विवेचन - पर्यन्त समग्र इन्द्रिय-उद्देशक कहना चाहिए।
विवेचन इन्द्रियाँ और उनके संस्थानादि से सम्बन्धित वर्णन प्रस्तुत उद्देशक में एक सूत्र में इन्द्रियों से सम्बन्धित समग्र वर्णन के लिए प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रिय-पद के प्रथम उद्देशक का निर्देश किया गया है ।
इन्द्रियसम्बन्धी द्वारगाथा — प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रियपद के प्रथम उद्देशक में वर्णित ग्यारह इन्द्रियसम्बन्धित द्वारों की गाथा इस प्रकार है—
'संठाणं बाहल्लं पोहत्तं कइ-पएस ओगाढे ।
अप्पाबहु पुट्ठ - पविट्ठ- विसय- अणगार - आहारे ' ॥ २०२॥
अद्दाय असी य मणी उडुपाणे तेल्ल फाणिय वसाय ।
कंबल थूणा थिग्गल दीवोदहि लोग लोगे ॥२०३॥
अर्थात् – (१) संस्थान ( आकारविशेष ) — श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान कदम्बपुष्प के आकार का है, चक्षुरिन्द्रिय का मसूर की दाल या चन्द्रमा के आकार का है, घ्राणेन्द्रिय का संस्थान अतिमुक्तक पुष्पवत् है; रसनेन्द्रिय का संस्थान क्षुरप्र (उस्तरे ) के आकार का है और स्पर्शेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का है। (२) बाहल्य (मोटाई) – पाँचों इन्द्रियों की मोटाई अंगुल के असंख्यातवें भाग है । (३) विस्तार — लम्बाई आदि की तीन इन्द्रियों की लम्बाई अंगुल के असंख्यातवें भाग है । रसनेन्द्रिय की अंगुल - पृथक्त्व (दो से नौ अंगुल तक) तथा स्पर्शेन्द्रिय की लम्बाई अपने-अपने शरीर प्रमाण है । (४) कतिप्रदेश— प्रत्येक इन्द्रिय अनन्त प्रदेशी है । (५) अवगाढ — प्रत्येक इन्द्रिय असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ है । ( ६ ) अल्पबहुत्व सबसे कम अवगाहना चक्षुरिन्द्रिय की, उससे संख्यातगणी अवगाहना