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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [५३ प्र.] इसके पश्चात् भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दनानमस्कार करके इस प्रकार पूछा-'भगवन्! आपके शिष्य स्कन्दक अनगार काल के अवसर पर कालधर्म को प्राप्त करके कहाँ गए और कहाँ उत्पन्न हुए ?'
[उ.] गौतम आदि को सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया—'हे गौतम! मेरा शिष्य स्कन्दक अनगार, प्रकृतिभद्र यावत् विनीत मेरी आज्ञा प्राप्त करके,स्वयमेव पंचमहाव्रतों का आरोपण करके, यावत् संल्लेखना-संथारा करके समाधि को प्राप्त होकर काल के अवसर पर काल करके अच्युतकल्प (देवलोक) में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ कतिपय देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की है। तदनुसार स्कन्दक देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है।'
५४. से णं भंते! खंदए देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितीखएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति। खंदओ समत्तो।
॥वितीय सए पढमो उद्देसो समत्तो॥ [५४] तत्पश्चात् श्री गौतमस्वामी ने पूछा-'भगवन् ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु का क्षय, भव का क्षय और स्थिति का क्षय करके उस देवलोक से कहाँ जाएंगे और कहाँ उत्पन्न होंगे ?'
[उ.] गौतम ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर महाविदेह-वर्ष (क्षेत्र) में जन्म लेकर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त करेंगे और सभी दुःखों का अन्त करेंगे।
श्री स्कन्दक का जीवनवृत्त पूर्ण हुआ।
विवेचन स्कन्दक की गति और मुक्ति के विषय में भगवत्कथन—प्रस्तुत सूत्रद्वय (५३-५४ सू.) में समाधिमरण प्राप्त स्कन्दकमुनि की भावी गति के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्नों का भगवान् द्वारा प्रदत्त उत्तर अंकित है। भगवान् ने समाधिमरण प्राप्त स्कन्दक मुनि की गति (उत्पत्ति) अच्युतकल्प देवलोक में बताई है तथा वहाँ से महाविदेहक्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि मुक्ति गति बताई है।
कहिं गए ? कहिं उववण्णे? = कहाँ किस गति में गए ? कहाँ किस देवलोक में उत्पन्न हुए ? चयं चइत्ता-चय-शरीर को छोड़कर।
'आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं' की व्याख्या—आउक्खएणं-आयुष्यकर्म के दलिकों की निर्जरा होने से, भवक्खएणं-देव भव के कारणभूत गत्यादि (नाम) कर्मों की निर्जरा होने से, ठिइक्खएणं आयुष्यकर्म भोग लेने से स्थिति का क्षय होने के कारण।
॥ द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति