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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अप्पाणं संजोएइ० तिरिय० मणुय० देव०, अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरिट्ट, सेत्तं मरमाणे वड्ढइ । से तं बालमरणे ।
[२६] 'वह बालमरण क्या है?' बालमरण बारह प्रकार का कहा गया है; वह इस प्रकार १) बलयमरण (बलन्मरण —— तड़फते हुए मरना ), (२) वशार्तमरण (परधीनतापूर्वक या विषयवश होकर रिब रिब कर मरना ), (३) अन्तःशल्यमरण (हृदय में शल्य रखकर मरना, या शरीर में कोई तीखा शस्त्रादि घुस जाने से मरना अथवा सन्मार्ग से भ्रष्ट होकर मरना ), (४) तद्भवमरण ( मरकर उसी भव में पुन: उत्पन्न होना, और मरना ), (५) गिरिपतन (६) तरुपतन, (७) जल - प्रवेश ( पानी में डूबकर मरना), (८) ज्वलनप्रवेश (अग्नि में जलकर मरना ), (९) विषभक्षण (विष खाकर मरना ), (१०) शस्त्रावपाटन (शस्त्राघात से मरना ), (११) वैहानस मरण (गले में फांसी लगाने या वृक्ष आदि पर लटकने से होने वाला मरण) और (१२) गृध्रपृष्ठमरण (गिद्ध आदि पक्षियों द्वारा पीठ आदि शरीरावयवों का मांस खाये जाने से होने वाला मरण) ।
स्कन्द ! इन बारह प्रकार के बालमरणों से मरता हुआ जीव अनन्त बार नारक भवों को प्राप्त करता है, तथा नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, इस चातुर्गतिक अनादि - अनन्त संसाररूप कान्तार (वन) में बार-बार परिभ्रमण करता | अर्थात् इस तरह बारह प्रकार के बालमरण से मरता हुआ जीव अपने संसार को बढ़ाता है। यह है— बालमरण का स्वरूप ।
२७. से किं तं पंडियमरणे ?
पंडियमरणे दुविहे प०, [२७] पण्डितमरण क्या है ?
पण्डितमरण दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है— पादपोपगमन (वृक्ष की कटी हुई शाखा की तरह स्थिर (निश्चल) होकर मरना) और भक्त - प्रत्याख्यान ( यावज्जीवन तीनों या चारों आहारों का त्याग करने के बाद शरीर की सार संभाल करते हुए जो मृत्यु होती है ।)
२८. से किं तं पाओवगमणे ?
पाओवगमणे दुविहे प०, , तं जहा— नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा अप्पडिकम्मे । से तं पाओवगमणे |
तं०—पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य ।
[२८] पादपोपगमन (मरण) क्या है ?
पादपोपगमन दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है— निर्धारिम और अनिर्हारिम । यह दोनों प्रकार का पादपोपगमन - मरण नियम से अप्रतिकर्म होता है। यह है— पादपोपगमन का स्वरूप । २९. से किं तं भत्तपच्चक्खाणे ?
भत्तपच्चक्खाणे दुविहे प०, तं जहा नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा सपडिकम्मे । से त्तं भत्तपच्चक्खाणे |
[२९] भक्तप्रत्याख्यान (मरण) क्या है ?