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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक - १] निःश्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? [ १६९ [६ उ.] हाँ, गौतम ! वायुकाय, वायुकायों को ही बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास और निःश्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है । ७[ १ ]वाउयाए णं भंते! वाउयाए चेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाति ? हंता, गोयमा ! जाव पच्चायाति । [७-१ प्र.] भगवन्! क्या वायुकाय, वायुकाय में ही अनेक लाख वार मर कर पुनः पुनः (वायुकाय में ही) उत्पन्न होता है ? [७-१ उ.] हाँ, गौतम! वायुकाय, वायुकाय में ही अनेक लाख वार मर कर पुनः पुनः वहीं उत्पन्न होता है. 1 [२] से भंते किं पुट्ठे उद्दाति ? अपुट्ठे उद्दाति ? गोयमा ! पुट्ठे उद्दाइ, नो अपुट्ठे उद्दाइ । ·[७-२ प्र.] भगवन्! क्या वायुकाय स्वकायशस्त्र से या परकायशस्त्र से स्पृष्ट हो (छू) कर मरण पाता है, अथवा अस्पृष्ट (बिना टकराए हुए) ही मरण पाता है ? [७-२ उ.] गौतम ! वायुकाय, (स्वकाय के अथवा परकाय के शस्त्र से) स्पृष्ट होकर मरण पाता है, किन्तु स्पृष्ट हुए बिना मरण नहीं पाता। [ ३ ] से भंते! किं ससरीरी निक्खमइ, असरीरी निक्खमइ ? गोयमा ! सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ । सेकेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ ? गोयमा! वाउकायस्स णं चत्तारि सरीरया पण्णत्ता, तं जहा — ओरालिए वेडव्विए तेयए कम्मए। ओरालिय- वेडव्वियाइं विप्पजहाय तेय-कम्मएहिं निक्खमति, से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्च — सिय ससरीरी सिय असरीरी निक्खइम | [७-३ प्र.] भगवन् ! वायुकाय मर कर (जब दूसरी पर्याय में जाता है, तब ) सशरीरी (शरीरसहित) होकर जाता है, या शरीररहित (अशरीरी) होकर जाता है ? [७-३ उ.] गौतम ! वह कथञ्चित् शरीरसहित होकर जाता (निकलता) है, कथंचित् शरीररहित होकर जाता है। [प्र.] भगवन्! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वायुकाय का जीव जब निकलता (दूसरी पर्याय में जाता है, तब वह कथञ्चित् शरीरसहित निकलता (परलोक में जाता) है, कथञ्चित् शरीररहित होकर निकलता (जाता) है ?
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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