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________________ १३६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र बाल आदि के लक्षण मिथ्यादृष्टि और अविरत को एकान्तबाल कहते हैं। वस्तुतत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानकर जो तदनुसार आचरण करता है, वह 'पण्डित' कहलाता है, और जो वस्तुतत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानता है, किन्तु आंशिक (एकदेश) आचरण करता है, वह बालपण्डित कहलाता है। एकान्तबाल मिथ्यादृष्टि एवं अविरत होता है, एकान्त-पण्डित महाव्रती साधु होता है और बालपण्डित देशविरत श्रमणोपासक होता है। एकान्तबाल मनुष्य के चारों गतियों का आयुष्य बन्ध क्यों—एकान्त बालत्व समान होते हुए भी एक ही गति का आयुष्यबन्ध न होकर चारों गतियों का आयुबन्ध होता है, इसका कारण एकान्तबाल जीवों का प्रकृतिवैविध्य है। कई एकान्तबालजीव महारम्भ, महापरिग्रही, असत्यमार्गोपदेशक तथा पापाचारी होते हैं, वे नरकायु या तिर्यञ्चायु का बन्ध करते हैं। कई एकान्तबालजीव अल्पकषायी, अकामनिर्जरा, बालतप आदि से युक्त होते हैं। वे मनुष्यायु या देवायु का बन्ध करते हैं। एकान्तपण्डित की दो गतियां जिनके सम्यक्त्वसप्तक (अनन्तानुबन्धी चार कषाय और मोहनीयत्रिक इन सात प्रकृतियों) का क्षय हो गया है, तथा जो तद्भवमोक्षगामी हैं, वे आयुष्यबन्ध नहीं करते। यदि इन सातप्रकृयितों के क्षय से पूर्व उनके आयुष्यबन्ध हो गया हो तो सिर्फ एक वैमानिक देवायु का बन्ध करते हैं। इसी कारण एकान्त पण्डित मनुष्य की क्रमशः दो ही गतियाँ कही गई हैं—अन्तक्रिया (मोक्षगति) अथवा कल्पोपपत्तिका (वैमानिक देवगति)। मृगघातकादि को लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा ४. पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा १ दहंसि वा २ उदगंसि वा ३ दवियंसि वा ४ वलयंसि वा ५ नूमंसिवागहणंसिवा७गहणविदुग्गंसिवा ८ पव्वतंसिवा ९पव्वतविदुग्गंसिवा १० वणंसि वा ११ वणविदुग्गंसि वा १२ मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता 'एते मिए' त्ति काउं अनयरस्स मियस्स वहाए कूड-पासं उद्दाइ ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा! जावं चणं से पुरिसे कच्छंसि वा १२ जाव कूड-पासं उद्दाइ तावंचणं से पुरिसे सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ? । से केणटेणं भंते! एवं वुच्चति 'सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ?' गोयमा! जे भविए उद्दवणयाए, णो बंधणयाए, णो मारणयाए, तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए पादोसियाए तीहि किरियाहिं पुढे। जे भविए उद्दवणयाए वि बंधणयाए वि, णो मारणयाए तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए पाओसियाए पारियावणियाए चउहि किरियाहिं पुढे । जे भविए उद्दवणयाए वि बंधणयाए वि मारणयाए वि तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणातिवातकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढे। से तेणटेणं जाव पंचकिरिए । [४ प्र.] भगवन् ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकारी, मृगों के शिकार में १. भवगती सूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक ९०-९१
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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