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प्रथम शतक : उद्देशक-८]
[१३५ और यावत् देवायु बाँध कर देवलोक में उत्पन्न होता है ?
- [२ उ.] हे गौतम! एकान्तपण्डित मनुष्य, कदाचित् आयु बांधता है और कदाचित् आयु नहीं बांधता। यदि आयु बांधता है तो देवायु बांधता है, किन्तु नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु नहीं बांधता। वह नरकायु नहीं बांधने से नारकों में उत्पन्न नहीं होता, इसी प्रकार तिर्यञ्चायु न बांधने से तिर्यञ्चों में उत्पन्न नहीं होता और मनुष्यायु न बांधने से मनुष्यों में भी उत्पन्न नहीं होता; किन्तु देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है।
[प्र.] भगवन् ! इसका क्या कारण है कि यावत्-देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है ?
[उ.] गौतम! एकान्तपण्डित मनुष्य की केवल दो गतियाँ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैंअन्तक्रिया और कल्पोपत्तिका (सौधर्मादि कल्पों में उत्पन्न होना)। इस कारण हे गौतम! एकान्तपण्डित मनुष्य देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है।
३. बालपंडिते णं भंते! मणुस्से किं नेरइयाउयं पकरेति जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति?
गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेति जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति। ' से केणढेणं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति ?
गोयमा! बालपंडिए णं मणुस्से तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म देसं उवरमति, देसं नो उवरमइ,देसं पच्चक्खाति, देसं णो पच्चक्खाति; से णं तेणं देसोवरम-देसपच्चखाणेणं नो नेरयाउयं पकरेति जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति।से तेणटेणं जाव देवेसु उववज्जइ।
[३ प्र.] भगवन् ! क्या बालपण्डित मनुष्य नरकायु बांधता है, यावत्-देवायु बांधता है ? और यावत् —देवायु बाँधकर देवलोक में उत्पन्न होता है?
[३ उ.] गौतम! वह नरकायु नहीं बांधता और यावत् (तिर्यञ्चायु तथा मनुष्यायु नहीं बांधता), देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है।
[प्र.] भगवन्! इसका क्या कारण है कि बालपण्डित मनुष्य यावत् देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है ?
[उ.] गौतम! बालपण्डित मनुष्य तथारूप श्रमण या माहन के पास से एक भी आर्य तथा धार्मिक सुवचन सुनकर, अवधारण करके एकदेश से विरत होता है, और एकदेश से विरत नहीं होता। एकदेश से प्रत्याख्यान करता है और एकदेश से प्रत्याख्यान नहीं करता। इसलिए हे गौतम! देश-विरति
और देश-प्रत्याख्यान के कारण वह नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बन्ध नहीं करता और यावत्-देवायु बाँधकर देवों में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम! पूर्वोक्त कथन किया गया है।
विवेचनबाल, पण्डित आदि के आयुबन्ध का विचार प्रस्तुत तीन सूत्रों में क्रमशः एकान्तबाल, एकान्तपण्डित और बाल-पण्डित मनुष्य के आयुष्यबन्ध का विचार किया गया है।