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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-७] [१३३ गर्भगत जीव के अंगादि-जिन अंगों में माता के आर्तव का भाग अधिक होता है। वे कोमल अंग-मांस, रक्त और मस्तक का भेजा (अथवा मस्तुलुंग-चर्बी या फेफड़ा) माता के होते हैं, तथा जिन अंगों में पिता के वीर्य का भाग अधिक होता है वे तीन कठोर अंग-केश, रोम तथा नखादि पिता के होते हैं। शेष सब अंग माता और पिता दोनों के पुद्गलों से बने हुए होते हैं। सन्तान के भवधारणीय शरीर का अन्त होने तक माता-पिता के ये अंग उस शरीर में रहते हैं। गर्भगत जीव के नरक या देवलोक में जाने का कारण धन, राज्य और कामभोग की तीव्र लिप्सा और शत्रुसेना को मारने की तीव्र आकांक्षा के वश मृत्यु हो जाये तो गर्भस्थ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव नरक में जाता है और धर्म, पुण्य, स्वर्ग एवं मोक्ष के तीव्र शुभ अध्यवसाय में मृत्यु होने पर वह देवलोक में जाता है। गर्भस्थ जीव; स्थिति-गर्भस्थ जीव ऊपर की ओर मुख किये चित्त सोता, करवट से सोता है, या आम्रफल की तरह टेढ़ा होकर रहता है। उसकी खड़े या बैठे रहने या सोने आदि की क्रिया माता की क्रिया पर आधारित है। बालक का भविष्य : पूर्वजन्मकृत कर्म पर निर्भर-पूर्वभव में शुभ कर्म उपार्जित किया हुआ जीव यहां शुभवर्णादि वाला होता है, किन्तु पूर्वजन्म में अशुभ कर्म उपार्जित किया हुआ जीव यहाँ अशुभवर्ण कुरस आदि वाला होता है। ॥ प्रथम शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त॥ १. भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ८६ से ९० तक
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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