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________________ ९६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र निरयावासंसि जहन्नियाए ओगाहणाए वट्टमाणा नेरतिया किं कोहोवउत्ता०? असीति भंगा भाणियव्वा जाव संखिज्जपदेसाधिया जहनिया ओगाहणा। असंखेज्जपदेसाहियाए जहनियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं तप्पउग्गुक्कोसियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं नेरइयाणं दोसु वि सत्तावीसं भंगा। [११ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त [११ उ.] गौतम! जघन्य अवगाहना वालों में अस्सी भंग कहने चाहिए, यावत् संख्यात प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना वालों के भी अस्सी भंग कहने चाहिए। असंख्यात-प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना वाले और उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना वाले, इन दोनों प्रकार के नारकों में सत्ताईस भंग कहने चाहिए। . विवेचन-नैरयिकों के क्रोधोपयुक्तादि निरूपणपूर्वक द्वितीय अवगाहनास्थान द्वारप्रस्तुत दो सूत्रों में नारकों के अवगाहनास्थान तथा क्रोधादियुक्तता का विचार किया गया है। अवगाहनास्थान-जिसमें जीव ठहरता है, अवगाहन करके रहता है, वह अवगाहना है। अर्थात् - जिस जीव का जितना लम्बा चौड़ा शरीर होता है, वह उसकी अवगाहना है। जिस क्षेत्र में जो जीव जितने आकाश प्रदेशों को रोक कर रहता है, उतने आधारभूत परिमाण क्षेत्र को भी अवगाहना कहते हैं। उस अवगाहना के जो स्थान–प्रदेशों की वृद्धि से विभाग हों, वे अवगाहनास्थान होते हैं। उत्कृष्ट अवगाहना-प्रथम नरक को उत्कृष्ट अवगाहना ७ धनुष, ३ हाथ, ६ अंगुल होती है, इससे आगे के नरकों में अवगाहना दुगुनी-दुगुनी होती है। अर्थात् शर्कराप्रभा में १५ धनुष, २ हाथ, १२ अंगुल की; बालुकाप्रभा में ३१ धनुष, १ हाथ की; पंकप्रभा में ६२ धनुष, २ हाथ की, धूमप्रभा में १२५ धनुष की; तमः प्रभा में २५० धनुष की; तमस्तमःप्रभा में ५०० धनुष की उत्कृष्ट अवगाहना होती है। जघन्यस्थिति तथा जघन्य अवगाहना के भंगों में अन्तर क्यों-जघन्यस्थितिवाले नारक जब तक जघन्य अवगाहना वाले रहते हैं, तब तक उनकी अवगाहना के ८० भंग ही होते हैं; क्योंकि जघन्य अवगाहना उत्पत्ति के समय ही होती है। जघन्यस्थिति वाले जिन नैरयिकों के २७ भंग कहे हैं, वे जघन्य अवगाहना को उल्लंघन कर चुके हैं, उनकी अवगाहना जघन्य नहीं होती। इसलिए उनमें २७ ही भंग होते हैं। जघन्य अवगाहना से लेकर संख्यातप्रदेश अधिक की अवगाहना वाले जीव नरक में सदा नहीं मिलते, इसलिए उनमें ८० भंग कहे गये हैं, किन्तु जघन्य अवगाहना से असंख्यातप्रदेश अधिक की अवगाहना वाले जीव, नरक में अधिक ही पाये जाते हैं; इसलिए उनमें २७ भंग होते हैं। १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ७१
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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