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________________ प्रथम शतक : उद्देशक - ३] कांक्षामोहनीय कर्मबन्ध के कारणों की परम्परा हैं)। ८. जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति ? हंता, बंधंतिं । [८.प्र.] भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं ? [८. उ. ] हाँ, गौतम ! बाँधते हैं । ९. [१] कहं णं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंतिं ? गोयमा ! पमादपच्चया जोगनिमित्तं च । [९-१ प्र.] भगवन्! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बांधते हैं ? [९-१ उ.] गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से (जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते [२] से णं भंते! पमादे किं पवहे ? गोयमा ! जोगप्पवहे । [९-२ प्र.] भगवन्! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ? [९-२ उ.] गौतम ! प्रमाद, योग से उत्पन्न होता है । [ ३ ] से णं भंते! जोगे किं पवहे ? गोयमा ! वीरियप्पवहे । [ ७३ [९-३ प्र.] भगवन् ! योग किससे उत्पन्न होता है ? [९-३ उ.] गौतम ! योग, वीर्य से उत्पन्न होता है । [ ४ ] से णं भंते! वीरिए किं पवहे ? गोयमा ! सरीरप्पवहे । [९-४ प्र.] भगवन् ! वीर्य किससे उत्पन्न होता है ? [९-४ उ.] गौतम ! वीर्य शरीर से उत्पन्न होता है । [५] से णं भंते! सरीरे किं पवहे ? गोयमा ! जीवप्पवहे । एवं सति अत्थि उट्ठाणे ति वा, कम्मे ति वा, बले ति वा, वीरिए ति वा, पुरिसक्कार- परक्कमेति वा । [९-५ प्र.] भगवन्! शरीर किससे उत्पन्न होता है ? [९-५ उ.] गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है और ऐसा होने में जीव का उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम होता है ।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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