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[110]
There are forty-two types of Name Karma, as follows: 1. Gati-nama, 2. Jati-nama, 3. Sarira-nama, 4. Sarira-angopaanga-nama, 5. Sarira-bandhana-nama, 6. Sarira-sanghatana-nama, 7. Sanhana-nama, 8. Sansthana-nama, 9. Varna-nama, 10. Gandha-nama, 11. Rasa-nama, 12. Sparsha-nama, 13. Aguru-laghu-nama, 14. Upghata-nama, 15. Paraghata-nama, 16. Anupurvi-nama, 17. Ucchvasa-nama, 18. Atapa-nama, 19. Udyota-nama, 20. Vihayoga-gati-nama, 21. Vasana-nama, 22. Thavara-nama, 23. Sukshma-nama, 24. Badara-nama, 25. Paryapta-nama, 26. Aparyapta-nama, 27. Sadharana-sarira-nama, 28. Pratyeka-sarira-nama, 29. Sthira-nama, 30. Asthira-nama, 31. Shubha-nama, 32. Ashubha-nama, 33. Subhaga-nama, 34. Durbhaga-nama, 35. Susvara-nama, 36. Dusvara-nama, 37. Aadeya-nama, 38. Anaadeya-nama, 39. Yasho-kirti-nama, 40. Ayasho-kirti-nama, 41. Nirmmana-nama, and 42. Tirthankara-nama.
[252]
Forty-two thousand Nagas hold the creeper in the salt ocean.
[253]
Forty-two Uddesana-kala are mentioned in the second category of the Mahalikas, in the division of the Vimanas.
[254]
The fifth and sixth Aaras of each Avasarpini Kala are said to be forty-two thousand years long. The first and second Aaras of each Utsarpini Kala are said to be forty-two thousand years long.
[End of the Twenty-Fourth Chapter of the Samavaya]
[255]
Forty-three divisions of Karma-vivag-jjanana are mentioned in the Karma-vipaka Sutra (the study that explains the good and bad results of Karma).
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११०]
[समवायाङ्गसूत्र २५१-नामकम्मे वायालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा-गइनामे १, जाइनामे २, सरीरनामे ३, सरीरंगोवंगा नामे ४, सरीरबंधणनामे ५, सरीरसंघायणनामे ६, संघयणनामे ७, संठाणनामे ८, वण्णनामे ९, गंधनामे १०, रसनामे ११, फासनामे १२, अगुरुलहुयनामे १३, उवघायनामे १४, पराघायनामे १५, आणुपुव्वीनामे १६, उस्सासनामे १७, आयवनामे १८, उज्जोयनामे १९, विहगगइनामे २०, तसनामे २१, थावरनामे २२, सहमनामे २३, बायरनामे २४, पज्जत्तनमे २५. अपज्जत्तनामे २६, साहारणसरीरनामे २७, पत्तेयसरीरनामे २८, थिरनामे २९, अथिरनामे ३०, सुभनामे ३१, असुभनामे ३२, सुभगनामे ३३, दुब्भगनामे ३४, सुस्सरनामे ३५. दुस्सरनामे ३६, आएज्जनामे ३७, अणाएज्जनामे ३८, जसोकित्तिनामे ३९, अजसोकित्तिनामे ४०, निम्माणनामे ४१, तित्थकरनामे ४२।।
नामकर्म बयालीस प्रकार का कहा गया है, जैसे-१. गतिनाम, २. जातिनाम, ३. शरीरनाम, ४. शरीराङ्गोपाङ्गनाम,५.शरीरबन्धननाम, ६.शरीरसंघातननाम,७.संहनननाम,८.संस्थाननाम,९. वर्णनाम, १०.गन्धनाम, ११. रसनाम, १२.स्पर्शनाम,१३. अगुरुलघुनाम, १४. उपघातनाम, १५. पराघातनाम,१६. आनुपूर्वीनाम, १७. उच्छ्वासनाम, १८. आतपनाम, १९. उद्योतनाम, २०.विहायोगतिनाम, २१. वसनाम, २२. स्थावरनााम, २३.सूक्ष्मनाम, २४. बादरनाम, २५. पर्याप्तनाम, २६.अपर्याप्तनाम, २७.साधारणशरीरनाम, २८. प्रत्येकशरीरनाम, २९. स्थिरनाम, ३०. अस्थिरनाम, ३१. शुभनाम, ३२. अशुभनाम, ३३. सुभगनाम, ३४. दुर्भगनाम, ३५. सुस्वरनाम, ३६. दुःस्वरनाम, ३७. आदेयनाम, ३८. अनादेयनाम, ३९. यशस्कीर्त्तिनाम, ४०. अयशस्कीर्तिनाम, ४१. निर्माणनाम और ४२. तीर्थंकरनाम।
२५२-लवणे णं समुद्दे वायालीसं नागसाहस्सीओ अभितरियं वेलं धारंति। लवणसमुद्र की भीतरी वेला को बयालीस हजार नाग धारण करते हैं। . २५३-महालियाए णं विमाणपविभत्तीए वितिए वग्गे वायालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता। महालिका विमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में बयालीस उद्देशन काल कहे गये हैं।
२५४-एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचम-छट्ठओ समाओ वायालीसं वाससहस्साइं कालेणं पण्णत्ताओ। एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढम-बीयाओ समाओ वायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ।
प्रत्येक अवसर्पिणी काल का पाँचवा छठा आरा (दोनों मिल कर) बयालीस हजार वर्ष का कहा गया है। प्रत्येक उत्सर्पिणी काल का पहिला-दूसरा आरा बयालीस हजार वर्ष का कहा गया है।
॥ द्विचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त ॥
त्रिचत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २५५-तेयालीसं कम्मविवागज्झयणा पण्णत्ता। कर्मविपाक सूत्र (कर्मों का शुभाशुभ फल बतलानेवाले अध्ययन) के तेयालीस अध्ययन कहे गये