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In the Ratnapraba earth, the state of many Narakas is said to be like thirty-two Palya. In the seventh earth below, the state of many Narakas is said to be like thirty-two Sagara. The state of many Asura Kumaras is said to be like thirty-two Palya. In the Saudharma-Ishana Kalpas, the state of many Devas is said to be like thirty-two Palya.
214-The Devas who are born in the Vijay, Vejayant, Jayant and Aparajit Vimanas, the state of many of these Devas is said to be like thirty-two Sagara. These Devas take breath or exhale after thirty-two half-months (sixteen months). The desire for food arises after thirty-two thousand years for these Devas.
Many Bhavyasiddhi Jivas will become Siddhas, Buddhas, liberated from karmas, attain Nirvana and end all sufferings after taking thirty-two births.
||Dvatrimshat Sthanak Samavay Sampt.
Trayastrimshat Sthanak Samavay 215-Thirty-three Asayan are said to be, as follows:
1. The Asayana of one thousand is said to be near the Rayani.
2. The Asayana of one thousand is said to be beyond the Rayani.
3. The Asayana of one thousand is said to be with the Rayani.
4. The Asayana of one thousand is said to be near the Rayani.
5. The Asayana of one thousand is said to be before the Rayani.
6. The Asayana of one thousand is said to be with the Rayani.
7. The Asayana of one thousand is said to be near the Rayani.
8. The Asayana of one thousand is said to be before the Rayani.
9. The Asayana of one thousand is said to be with the Rayani.
10. The Asayana of one thousand is said to be with the Rayani.
After the Rayani, the Asayana of one thousand.
11. The Asayana of one thousand is said to be with the Rayani.
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[समवायाङ्गसूत्र देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति बत्तीस पल्योपम कही गई है। अधस्तन सातवीं पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति बत्तीस सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बत्तीस पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बत्तीस पल्योपम कही गई है।
२१४-जे देवा विजय-वेजयंत-जयंत-अवराजियविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीसं सागरोवमाइंठिई पण्णत्ता।ते णं देवा बत्तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा, पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा। तेसि णं देवाणं बत्तीसवाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ।
संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे बत्तीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
जो देव विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उनमें से कितनेक देवों की स्थिति बत्तीस सागरोपम कही गई है। वे देव बत्तीस अर्धमासों (सोलह मासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों के बत्तीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बत्तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व कर्मों का अन्त करेंगे।
॥द्वात्रिंशत्स्थानक समवाय समाप्त।
त्रयस्त्रिशत्स्थानक-समवाय २१५-तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. सेहे राइणियस्स आसन्नं गंता भवइ आसायणा सेहस्स। २. सेहे राइणियस्स परओ गंता भवइ आसायणा सेहस्स। ३. सेहे राइणियस्स सपक्खं गंता भवइ आसायणा सेहस्स। ४. सेहे राइणियस्स आसन्नं ठिच्चा भवइ आसायणा सेहस्स जाव।
सेहे रायणियस्स पुरओ ठिच्चा भवइ, आसायणा सेहस्स।
सेहे रायणियस्स सपक्खं ठिच्चा भवइ, आसायणा सेहस्स। ७. सेहे रायणियस्स आसनं निसीइत्ता भवइ, आसायणा सेहस्स। ८. सेहे रायणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ, आसायणा सेहस्स। ९. सेहे रायणियस्स सद्धिं सपक्खं निसीइत्ता भवइ, आसायणा सेहस्स। १०. सेहे रायणियस्स सद्धिं बहिया वियारभूमिं निक्खंते समाणे पुत्वामेव सेहतराए आयामेइ
पच्छा रयणिए, आसायणा सेहस्स। ११. सेहे रायणिए सद्धिं बहिया विहारभूमि वा वियारभूमिं वा निक्खंते समाणे तत्थ