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## English Translation:
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[Samvayanga Sutra does not depend on others, it is called Chhedanayasthit. Just like the verse 'Dhammo Mangalamuktim' etc. does not depend on other verses to reveal its meaning. Similarly, the Sutras which are Chhinna Chhedanaya are called Chhinna Chhedanayik. There are twenty-two such Sutras in the Drishtivad Anga which are explained according to the practice or method of Jainism. The Nay which depends on the Chhed of the Achhinna (Abhinna) Sutra is called Achhinna Chhedanak, i.e., it depends on the second and subsequent verses. Twenty-two such Sutras are spoken according to the practice of Ajivika Goshalak's opinion. The Sutras which are spoken with the dependence of the three Nays - Dravyastik, Paryayastik and Ubayastik - are called Trikanayik or Trairasik according to the practice of their opinion. The Sutras which are spoken with the dependence of the four Nays - Sangrah, Vyavahar, Rijusutra and Shabdaditrik - are called Chatushkanayik. They are related to their own time.
**152-Twenty-two types of Pudgala Parinam (Dharma) are mentioned, such as:** 1. Krishnavarna Parinam, 2. Neelavarna Parinam, 3. Lohitavarna Parinam, 4. Haridravana Parinam, 5. Shuklavarna Parinam, 6. Surabhigandha Parinam, 7. Durabhigandha Parinam, 8. Tiktarasa Parinam, 9. Katukaras Parinam, 10. Kshayarasa Parinam, 11. Amla Rasa Parinam, 12. Madhura Rasa Parinam, 13. Karkasha Sparsha Parinam, 14. Mrdu Sparsha Parinam, 15. Guru Sparsha Parinam, 16. Laghu Sparsha Parinam, 17. Shita Sparsha Parinam, 18. Ushna Sparsha Parinam, 19. Snigdha Sparsha Parinam, 20. Rooksha Sparsha Parinam, 21. Agurulaghu Sparsha Parinam and 22. Gurulaghu Sparsha Parinam.
**153-In this Ratnapraba Earth, the state of many Narakas is said to be twenty-two Palyopama. In the sixth Tamaspraba Earth, the excellent state of Narakas is said to be twenty-two Sagaropama. In the lowest seventh Tamasthma Earth, the state of many Narakas is said to be twenty-two Sagaropama. The state of many Asurakumaras and Devas is said to be twenty-two Palyopama. In the Saudharma-Ishana Kalpas, the state of many Devas is said to be twenty-two Palyopama.**
**154-In the Aachuta Kalpa, the state of Devas [excellent] is said to be twenty-two Sagaropama. The lower...**
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[समवायाङ्गसूत्र अपेक्षा नहीं रखता है, वह छेदनयस्थित कहलाता है। जैसे 'धम्मो मंगलमुक्टिं' इत्यादि श्लोक अपने अर्थ को प्रकट करने के लिए अन्य श्लोक की अपेक्षा नहीं रखता। इसी प्रकार जो सूत्र छिन्नछेदनय वाले होते हैं उन्हें छिन्नछेदनयिक कहा जाता है। दृष्टिवाद अंग में ऐसे बाईस सूत्र हैं जो जिनमत की परिपाटी या पद्धति से निरूपण किये हैं। जो नय अच्छिन्न (अभिन्न) सूत्र की छेद से अपेक्षा रखता है, वह अच्छिन्नछेदनक कहलाता है अर्थात् द्वितीय आदि श्लोकों की अपेक्षा रखता है। ऐसे बाईस सूत्र आजीविक गोशालक के मत की परिपाटी से कहे गये हैं। जो सूत्र द्रव्यास्तिक, पर्यायास्तिक और उभयास्तिक इन तीन नयों की अपेक्षा से कहे गये हैं, वे त्रिकनयिक या त्रैराशिक मत की परिपाटी से कहे गये हैं। जो सूत्र संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्दादित्रिक, इन चार नयों की अपेक्षा से कहे गये हैं वे चतुष्कनयिक कहे जाते हैं। वे स्वसमय से सम्बद्ध हैं।
१५२-वावीसविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णपरिणामे, नीलवण्णपरिणामे, लोहियवण्णपरिणामे, हलिद्दवण्णपरिणमे, सुक्किल्लवण्णपरिणामे, सुब्भिगंधपरिणामे, दुब्भिगंधपरिणामे, तित्तरसपरिणामे, कडयरसपरिणामे, कसायरसपरिणामे, अंविलरसपरिणामे, महुररसपरिणामे, कक्खडफासपरिणामे, मउयफासपरिणामे, गुरुफासपरिणामे, लहुफासपरिणामे, सीतफासपरिणामे, उसिणफासपरिणामे, णिद्धफासपरिणामे, लुक्खफासपरिणामे, अगुरुलहुफासपरिणामे, गुरुलहुफासपरिणामे।
पुद्गल के परिणाम (धर्म) बाईस प्रकार के कहे गये हैं जैसे- १. कृष्णवर्णपरिणाम २. नीलवर्णपरिणाम, ३.लोहितवर्णपरिणाम, ४. हारिद्रवर्णपरिणाम, ५. शुक्लवर्णपरिणाम, ६. सुरभिगन्धपरिणाम, ७. दुरभिगन्धपरिणाम, ८. तिक्तरसपरिणाम, ९. कटुकरसपरिणाम, १०. कषायरसपरिणाम, ११.. आम्लरसपरिणाम, १२. मधुररसपरिणाम, १३. कर्कशस्पर्शपरिणाम, १४. मृदुस्पर्शपरिणाम, १५. गुरुस्पर्शपरिणाम, १६. लघुस्पर्शपरिणाम, १७. शीतस्पर्शपरिणाम, १८. उष्णस्पर्शपरिणाम, १९. स्निग्धस्पर्शपरिणाम २०. रूक्षस्पर्शपरिणाम, २१. अगुरुलघुस्पर्शपरिणाम और २२. गुरुलघुस्पर्शपरिणाम।
१५३-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं वावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहणणेणं वावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं वावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं वावीस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
___ इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई है। छठी तमःप्रभा पृथिवी में नारकियों की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है। अधस्तन सातवीं तमस्तमा पृथिवी में कितनेक नारकियों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई
है।
१५४-अच्चुते कप्पे देवाणं [ उक्कोसेणं] वावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। हेट्ठिम