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The time of this Gunasthan is equal to the time of pronunciation of the five short vowels 'a, i, u, ṛ, ḷ'. Within this time, they destroy all the natures residing in the beings of Vedaniya, Ayu, Nama and Gotrakarma, become pure, Nirjan Siddhas, and reside in the Siddhalaya, becoming the enjoyers of infinite self-generated happiness.
96-The Jivas of the Bharat and Airavata regions are said to be fourteen thousand four hundred and one yojanas long, plus six parts out of nineteen parts of a yojana.
Explanation- The shape of the Bharat and Airavata regions is like a bow with a string attached. The length of the string is called the Jiva. It is said to be (144011) yojanas long in these regions.
97-Each Chaturanta Chakravarti king has fourteen jewels, such as: Striratna, Senapatiratna, Grihapatiratna, Purohitratna, Vardhakiratna, Ashvaratna, Hastiratna, Ashiratna, Dandaratna, Chakratna, Chhatratna, Charmaratna, Maniratna and Kakiniratna.
Explanation- In animate or inanimate objects, the object that is the best in its class is called a Ratna. The most beautiful woman in the time of each Chakravarti becomes his queen and is called Striratna. Similarly, the chief commander of the army is called Senapatiratna, the chief storekeeper or treasurer is called Grihapatiratna, the priest who performs peace ceremonies etc. is called Purohitratna, the carpenter who builds chariots etc. is called Vardhakiratna, the best horse is called Ashvaratna and the best elephant is called Hastiratna. These seven are animate Panchendriya Ratnas. The remaining seven are one-sense body Ratnas. It is said that one thousand gods serve each Ratna. This proves the excellence of these Ratnas.
98-In this island called Jambudvipa, fourteen great rivers flow from the east and west into the Lavanasamudra. Such as: Ganga-Sindhu, Rohita-Rohitansha, Hari-Harikanta, Sita-Sitoda, Narakanta-Narikanta, Suvarnakula-Rupyakuka, Rakta and Raktavati.
Explanation- Of the above seven pairs, the first named great river flows from the east and the second named great river flows from the west into the Lavanasamudra. Each pair of rivers flows through the Bharat etc.
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[समवायाङ्गसूत्र १४. अयोगिकेवली गुणस्थान-इस गुणस्थान का काल 'अ, इ, उ, ऋ, लु' इन पांच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारणकाल-प्रमाण है। इतने ही समय के भीतर वे वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म की सभी सत्ता में स्थित प्रकृतियों का क्षय करके शुद्ध निरंजन सिद्ध होते हुए सिद्धालय में जा विराजते हैं और अनन्त स्वात्मोत्थ सुख के भोक्ता बन जाते हैं।
९६-भरहेरवयाओ णं जीवाओ चउद्दस चउद्दस जोयणसहस्साइं चत्तारि अ एगुत्तरे जोयणसए छच्च एगूणवीसे भागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ।
भरत और ऐरवत क्षेत्र की जीवाएं प्रत्येक चौदह हजार चार सौ एक योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण लम्बी कही गई हैं।
विवेचन-डोरी चढ़े हुए धनुष के समान भरत और ऐरवत क्षेत्र का आकार है। उसमें डोरी रूप लम्बाई को जीवा कहते हैं । वह उक्त क्षेत्रों की (१४४०११ ) योजन प्रमाण लम्बी है।
९७–एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउद्दस रयणा पण्णत्ता, तं जहाइत्थीरयणे, सेणावइरयणे, गाहावइरयणे, पुरोहियरयणे, बङ्कइरयणे, आसरयणे, हत्थिरयणे, असिरयणो, दण्डरयणे चक्करयणे, छत्तरयणे, चम्मरयणे, मणिरयणे, कागिणिरयणे।
प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के चौदह-चौदह रत्न होते हैं, जैसे- स्त्रीरत्न, सेनापतिरत्न, गृहपतिरत्न, पुरोहितरत्न, वर्धकीरत्न, अश्वरत्न, हस्तिरत्न, असिरत्न, दंडरत्न, चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, मणिरत्न और काकिणिरत्न।
विवेचन-चेतन या अचेतन वस्तुओं में जो वस्तु अपनी जाति में सर्वोत्कृष्ट होती है, उसे रल कहा जाता है। प्रत्येक चक्रवर्ती के समय में जो सर्वश्रेष्ठ सुन्दर स्त्री होती है, वह उसकी पट्टरानी बनती है और उसे स्त्रीरत्न कहा जाता है। इसी प्रकार प्रधान सेना-नायक को सेनापतिरत्न, प्रधान कोठारी या भंडारी को गृहपतिरत्न, शान्तिकर्मादि करानेवाले पुरोहित को पुरोहितरत्न, रथादि के निर्माण करने वाले बढ़ई को वर्धकिरत्न, सर्वोत्तम घोड़े को अश्वरत्न और सर्वश्रेष्ठ हाथी को हस्तिरत्न कहा जाता है। ये सातों चेतन पंचेन्द्रिय रत्न हैं । शेष सात एकेन्द्रिय कायवाले रत्न हैं। कहा जाता है कि प्रत्येक रत्न की एक-एक हजार देव सेवा करते हैं। इसी से उन रत्नों की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध है।
९८-जंबुद्दीवे णं दीवे चउद्दस महानईओ पुव्वावरेण लवणसमुदं समप्पंति, तं जहागंगा, सिंधू, रोहिआ, रोहिअंसा, हरी, हरिकंता, सीआ, सीओदा, नरकंता, नारीकंता, सुवण्णकूला, रुप्पकूला, रा, रत्तवई।
___ जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चौदह महानदियां पूर्व और पश्चिम दिशा से लवणसमुद्र में जाकर मिलती हैं। जैसे- गंगा-सिन्धु, रोहिता-रोहितांसा, हरी-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नरकान्ता-नारीकान्ता, सुवर्णकूला-रुप्यकूला, रक्ता और रक्तवती।
__विवेचन- उक्त सात युगलों में से प्रथम नाम वाली महानदी पूर्व की ओर से और दूसरे नाम वाली महानदी पश्चिम की ओर से लवणसमुद्र में प्रवेश करती है। नदियों का एक-एक युगल भरत आदि