SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ स्थानाङ्गसूत्रम् ___पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—प्राणातिपात क्रिया (जीव-घात से होने वाला कर्मबन्ध) और अप्रत्याख्यान क्रिया (अविरति से होनेवाला कर्म-बन्ध) (११)। प्राणातिपात क्रिया दो प्रकार की कही गई है— स्वहस्तप्राणातिपात क्रिया (अपने हाथ से अपने या दूसरे के प्राणों का घात करना) और परहस्तप्राणातिपात क्रिया (दूसरे के हाथ से अपने या दूसरे के प्राणों का घात कराना) (१२) । अप्रत्याख्यानक्रिया दो प्रकार की कही गई है— जीव-अप्रत्याख्यान क्रिया (जीव-विषयक अविरति से होने वाला कर्म-बन्ध) और अजीव-अप्रत्याख्यान क्रिया (मद्य आदि अजीव-विषयक अविरति से अर्थात् प्रत्याख्यान न करने से होने वाला कर्मबन्ध) (१३)। १४- दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—आरंभिया चेव, पारिग्गहिया चेव। १५- आरंभिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवआरंभिया चेव, अजीवआरंभिया चेव। १६– पारिग्गहिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवपारिग्गहिया चेव, अजीवपारिग्गहिया चेव। पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—आरम्भिकी क्रिया (जीव उपमर्दन की प्रवृत्ति) और पारिग्रहिकी क्रिया (परिग्रह में प्रवृत्ति) (१४)। आरम्भिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है—जीवआरम्भिकी क्रिया (जीवों के उपमर्दन की प्रवृत्ति) और अजीव-आरम्भिकी क्रिया (जीव-कलेवर, जीवाकृति आदि के उपमर्दन की तथा अन्य अचेतन वस्तुओं के आरम्भ-समारम्भ की प्रवृत्ति) (१५)। पारिग्रहिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है—जीवपारिग्रहिकी क्रिया (सचेतन दासी-दास आदि परिग्रह में प्रवृत्ति) और अजीव-पारिग्रहिकी क्रिया.(अचेतन हिरण्यसुवर्णादि के परिग्रह में प्रवृत्ति) (१६)। १७- दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा मायावत्तिया चेव, मिच्छादसणवत्तिया चेव। १८मायावत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—आयभाववंकणता चेव, परभाववंकणता चेव। १९मिच्छादसणवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—ऊणाइरियमिच्छादसणवत्तिया चेव, तव्वइरित्तमिच्छादसणवत्तिया चेव। पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—मायाप्रत्यया क्रिया (माया से होने वाली प्रवृत्ति) और मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (मिथ्यादर्शन से होनेवाली प्रवृत्ति) (१७)। मायाप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है—आत्मभाव-वंचना क्रिया (अप्रशस्त आत्मभाव को प्रशस्त प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति) और परभाव-वंचना क्रिया (कूटलेख आदि के द्वारा दसरों को ठगने की क्रिया) (१८)। मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है-ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (वस्तु को जो यथार्थ स्वरूप है उससे हीन या अधिक कहना। जैसे शरीर-व्यापी आत्मा को अंगुष्ठ-प्रमाण कहना। अथवा सर्व लोक-व्यापक कहना।) और तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (सद्भूत वस्तु के अस्तित्व को स्वीकार न करना, जैसे—आत्मा है ही नहीं) (१९)। २०- दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—दिट्ठिया चेव, पुट्ठिया चेव। २१– दिट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवदिट्ठिया चेव, अजीवदिट्ठिया चेव। २२– पुट्ठिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवपुट्ठिया चेव, अजीवपुट्ठिया चेव। पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—दृष्टिजा क्रिया (देखने के लिए रागात्मक प्रवृत्ति का होना) और स्पृष्टिजा क्रिया (स्पर्शन के लिए रागात्मक प्रवृत्ति का होना) (२०)। दृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की कही गई है—
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy