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________________ द्वितीय स्थान — प्रथम उद्देश क्रिया-पद २– दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा जीवकिरिया चेव, अजीवकिरिया चेव । ३– जीवकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा सम्मत्तकिरिया चेव, मिच्छत्तकिरिया चेव । ४– अजीवकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा — इरियावहिया चेव, संपराइगा चेव । ५— दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा — काइया चेव, आहिगरणिया चेव । ६ - काइया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—अणुवरयकायकिरिया चेव, दुपउत्तकायकिरिया चेव । ७—– आहिगरणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा संजोयणाधिकरणिया चेव, णिव्वत्तणाधिकरणिया चेव । ८- दो किरियाओ पण्णत्ताओ तं जहा——–पाओसिया चेव, पारियावणिया चेव । ९ – पाओसिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा जीवपाओसिया चेव, अजीवपाओसिया चेव । १०– पारियावणिया किरिया, दुविहा पण्णत्ता, तं जहा— सहत्थपारियावणिया चेव, परहत्थपारियावणिया चेव । - २५ क्रिया दो प्रकार की कही गई है— जीवक्रिया ( जीव की प्रवृत्ति) और अजीवक्रिया (पुद्गल वर्गणाओं की कर्मरूप में परिणति) (२) । जीवक्रिया दो प्रकार की कही गई है— सम्यक्त्वक्रिया (सम्यग्दर्शन बढ़ाने वाली क्रिया) और मिथ्यात्वक्रिया (मिथ्यादर्शन बढ़ाने वाली क्रिया) (३) । अजीव क्रिया दो प्रकार की होती है ऐर्यापथिकी ( वीतराग को होने वाली कर्मास्रवरूप क्रिया) और साम्परायिकी ( सकषाय जीव को होने वाली कर्मास्त्रावरूप क्रिया) (४) । पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है— कायिकी (शारीरिक क्रिया) और आधिकरणिकी (अधिकरणशस्त्र आदि की प्रवृत्तिरूप क्रिया) (५) । कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है— अनुपरतकायक्रिया (विरतिरहित व्यक्ति की शारीरिक प्रवृत्ति) और दुष्प्रयुक्तकायक्रिया (इंद्रिय और मन के विषयों में आसक्त प्रमत्तसंयत की शारीरिक प्रवृत्तिरूप क्रिया) (६) । आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है—संयोजनाधिकरणिकी क्रिया (पूर्वनिर्मित भागों को जोड़कर शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया) और निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया ( नये सिरे से शस्त्रनिर्माण करने की क्रिया) (७)। पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है— प्रादोषिकी ( मात्सर्यभावरूप क्रिया) और पारितापनिकी ( दूसरों को सन्ताप देने वाली क्रिया) (८) । प्रादोषिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है— जीवप्रादोषिकी ( जीव के प्रति मात्सर्यभावरूप क्रिया) और अजीवप्रादोषिकी ( अजीव के प्रति मात्सर्य भावरूप क्रिया) (९) । पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है— स्वहस्तपारितापनिकी ( अपने हाथ से स्वयं को या दूसरे को परिताप देने रूप क्रिया) और परहस्तपारितापनिकी ( दूसरे व्यक्ति के हाथ से स्वयं को या अन्य को परिताप दिलानेवाली क्रिया) (१०) । ११- दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— पाणातिवायकिरिया चेव, अपच्चक्खाणकिरिया चेव । १२ – पाणातिवायकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा— सहत्थपाणातिवायकिरिया चेव, परहत्थपाणातिवायकिरिया चेव । १३ – अपंच्चक्खाणकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहाजीवअपच्चक्खाणकिरिया चेव, अजीवअपच्चक्खाणकिरिया चेव
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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