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________________ दशम स्थान ७२७ सर्व जीव दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय, ९. पंचेन्द्रिय, १०. अनिन्द्रिय (सिद्ध) जीव। अथवा सर्व जीव दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. प्रथम समय-उत्पन्न नारक। २. अप्रथम समय-उत्पन्न नारक। ३. प्रथम समय में उत्पन्न तिर्यंच। ४. अप्रथम समय में उत्पन्न तिर्यंच। ५. प्रथम समय में उत्पन्न मनुष्य। ६. अप्रथम समय में उत्पन्न मनुष्य। ७. प्रथम समय में उत्पन्न देव। ८. अप्रथम समय में उत्पन्न देव। ९. प्रथम समय में सिद्धगति को प्राप्त सिद्ध। १०. अप्रथम समय में सिद्धगति को प्राप्त सिद्ध (१५३)। शतायुष्क-दशा-सूत्र १५४- वाससताउयस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहासंग्रहणी गाथा बाला किड्डा य मंदा य, बला पण्णा य, हायणी । पवंचा पब्भारा य मुम्मुही सायणी तधा ॥१॥ सौ वर्ष की आयु वाले पुरुष की दश दशाएं कही गई हैं, जैसे१. बालदशा, २. क्रीडादशा, ३. मन्दादशा, ४. बलादशा, ५.. प्रज्ञादशा, ६. हायिनीदशा, ७. प्रपंचादशा, ८. प्राग्भारादशा, ९. उन्मुखीदशा, १०. शायिनीदशा (१५४)। विवेचन— मनुष्य की पूर्ण आयु सौ वर्ष मानकर, दश-दश वर्ष की एक-एक दशा का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। खुलासा इस प्रकार है १. बालदशा- इसमें सुख-दुःख या भले-बुरे का विशेष बोध नहीं होता। २. क्रीडादशा- इसमें खेल-कूद की प्रवृत्ति प्रबल रहती है। ३. मन्दादशा- इसमें भोग-प्रवृत्ति की अधिकता से बुद्धि के कार्यों की मन्दता रहती है। ४. बलादशा- इसमें मनुष्य अपने बल का प्रदर्शन करता है। ५. प्रज्ञादशा- इसमें मनुष्य की बुद्धि धन कमाने, कुटुम्ब पालने आदि में लगी रहती है। ६. हायनीदशा— इसमें शक्ति क्षीण होने लगती है। ७. प्रपंचादशा- इसमें मुख से लार-थूक आदि गिरने लगते हैं।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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