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________________ दशम स्थान ७२५ वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—मालवंते, चित्तकूडे, पम्हकूडे, (णलिणकूडे, एगसेले, तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे), सोमणसे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के दोनों कूलों पर दश वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे १. माल्यवानकूट, २. चित्रकूट, ३. पक्ष्मकूट, ४. नलिनकूट, ५. एकशैल, ६. त्रिकूट, ७. वैश्रमणकूट, ८. अंजनकूट, ९. मातांजनकूट, १०. सौमनसकूट (१४५)।। १४६- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणईए उभओकूले दस वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा–विज्जुप्पभे, (अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावसे, चंदपव्वते, सूरपब्वते, णागपव्वते, देवपव्वते), गंधमायणे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, मन्दर पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों कूलों पर दश वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं, जैसे १. विद्युत्प्रभकूट, २. अङ्कावतीकूट, ३. पक्ष्मावतीकूट, ४. आशीविषकूट, ५. सुखावहकूट, ६. चन्द्रपर्वतकूट, ७. सूर्यपर्वतकूट, ८. नागपर्वतकूट, ९. देवपर्वतकूट, १०. गन्धमादनकूट (१४६)। १४७- एवं धायइसंडपुरथिमद्धेवि वक्खारा भाणियव्वा जाव पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे। इसी प्रकार धातकीषण्ड के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में तथा पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध-पश्चिमार्ध में शीता और शीतोदा महानदियों के दोनों कूलों पर दश-दश वक्षस्कार पर्वत जानना चाहिए (१४७)। कल्प-सूत्र १४८- दस कप्पा इंदाहिट्ठिया पण्णत्ता, तं जहा—सोहम्मे, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभलोए, लंतए, महासुक्के), सहस्सारे, पाणते, अच्चुते। इन्द्रों से अधिष्ठित कल्प दश कहे गये हैं, जैसे१. सौधर्म कल्प, २. ईशान कल्प, ३. सनत्कुमार कल्प, ४. माहेन्द्र कल्प, ५. ब्रह्मलोक कल्प, ६. लान्तक कल्प, ७. महाशुक्र कल्प, ८. सहस्रार कल्प, ९. प्राणत कल्प, १०. अच्युत कल्प (१४८)। १४९- एतेसु णं दससु कप्पेसु दस इंदा पण्णत्ता, तं जहा—सक्के ईसाणे, (सणंकुमारे, माहिंदे, बंभे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे, पाणते), अच्चुते। इन दश कल्पों में दश इन्द्र हैं, जैसे१. शक्र, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्म, ६. लान्तक, ७. महाशुक्र, ८. सल्लार, ९. प्राणत, १०. अच्युत (१४९)। १५०- एतेसि णं दसण्हं इंदाणं दस परिजाणिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा—पालए, पुष्फए, (सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे), विमलवरे, सव्वतोभद्दे।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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