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दशम स्थान
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१. जम्बू सुदर्शन वृक्ष, २. धातकीवृक्ष, ३. महाधातकी वक्ष, ४. पद्म वृक्ष, ५. महापद्म वृक्ष तथा पांच कूटशाल्मली वृक्ष।
वहां महर्धिक, महाद्युतिसम्पन्न, महानुभाग, महायशस्वी, महाबली और महासुखी तथा एक पल्योपम की स्थितिवाले दश देव रहते हैं, जैसे
१. जम्बूद्वीपाधिपति अनादृत, २. सुदर्शन, ३. प्रियदर्शन, ४. पौण्डरीक, ५. महापौण्डरीक।
तथा पाँच गरुड़ वेणुदेव (१३९)। दुःषमा-लक्षण-सूत्र
१४० - दसहिं ठाणेहिं ओगाढं दुस्समं जाणेजा, तं जहा—अकाले वरिसइ, काले ण वरिसइ, असाहू पूइज्जति, साहू ण पूइज्जति, गुरुसु जणो मिच्छं पडिवण्णो, अमणुण्णा सद्दा, (अमणुण्णा रूवा, अमणुण्णा गंधा, अमणुण्णा रसा, अमणुण्णा) फासा।
दश निमित्तों से अवगाढ़ दुःषमा-काल का आगमन जाना जाता है, जैसे१. अकाल में वर्षा होने से, २. समय पर वर्षा न होने से, ३. असाधुओं की पूजा होने से, ४. साधुओं की पूजा न होने से, ५. गुरुजनों के प्रति मनुष्यों का मिथ्या या असद् व्यवहार होने से, ६. अमनोज्ञ शब्दों के हो जाने से, ७. अमनोज्ञ रूपों के हो जाने से, ८. अमनोज्ञ गन्धों के हो जाने से, ९. अमनोज्ञ रसों के हो जाने से,
१०. अमनोज्ञ स्पर्शों के हो जाने से (१४०)। सुषमा-लक्षण-सूत्र
१४१– दसहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेजा, तं जहा—अकाले ण वरिसति, (काले वरिसति, असाहू ण पूइज्जति, साहू पुइज्जंति, गुरुसु जणो सम्म पडिवण्णो, मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा, मणुण्णा गंधा, मणुण्णा रसा), मणुण्णा फासा।
दश निमित्तों से सुषमा काल की अवस्थिति जानी जाती है, जैसे१. अकाल में वर्षा न होने से,
२. समय पर वर्षा होने से, . ३. असाधुओं की पूजा नहीं होने से, ४. साधुओं की पूजा होने से, ५. गुरुजनों के प्रति मनुष्य का सद्व्यवहार होने से, ६. मनोज्ञ शब्दों के होने से,
७. मनोज्ञ रूपों के होने से, ८. मनोज्ञ गन्धों के होने से,
९. मनोज्ञ रसों के होने से, १०. मनोज्ञ स्पर्शों के होने से (१४१)। [कल्प-वृक्ष-सूत्र
१४२– सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, तं जहा