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________________ दशम स्थान इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी दण्डक वाले जीवों को दश दश संज्ञाएं जाननी चाहिए (१०७) । वेदना - सूत्र १०८— णेरड्या णं दसविधं वेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा सीतं, उसिणं, खुधं, पिवासं, कंडुं, परज्झं, भयं, सोगं, जरं, वाहिं । ७१५ नारक जीव दश प्रकार की वेदनाओं का अनुभव करते रहते हैं, जैसे— १. शीत वेदना, २ . उष्ण वेदना, ३. क्षुधा वेदना, ४. पिपासा वेदना, ५. कण्डू वेदना (खुजली का कष्ट), ६. परजन्यवेदना ( परतंत्रता का या परजनित कष्ट), ७. भय वेदना, ८. शोक वेदना, ९ जरा वेदना, १०. व्याधि वेदना (१०८) । छद्मस्थ-सूत्र १०९ – दस ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा — धम्मत्थिकायं, (अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, ) वातं, अयं जिणे भविस्सति वा ण वा भविस्सति, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा ण वा करेस्सति । एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा ( जिणे केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा— धम्मत्थिकार्य अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, अयं जिणे भविस्सति वा ण वा भविस्सति), अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा ण वा करेस्सति । छद्मस्थ जीव दश पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से न जानता है, न देखता है, जैसे— १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. शरीरमुक्त जीव, ५. परमाणु- पुद्गल, ६. शब्द, ७. गन्ध, ८. वायु, ९. यह जिन होगा, या नहीं, १०. यह सभी दुःखों का अन्त करेगा या नहीं। किन्तु विशिष्ट ज्ञान और दर्शन के धारक अर्हत्, जिन, केवली उन्हीं दश पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से जानतेदेखते हैं, जैसे १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. शरीर - मुक्त जीव, ५. परमाणु- पुद्गल, ६. शब्द, ७. गन्ध, ८. वायु, ९. यह जिन होगा, या नहीं, १०. यह सभी दुःखों का अन्त करेगा, या नहीं (१०९) । दशा-सूत्र ११० – दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— कम्मविवागदसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ । दश दशा (अध्ययन) वाले दश आगम कहे गये हैं, जैसे १. कर्मविपाकदशा, २. उपासकदशा, ३. अन्तकृत्दशा, ४. अनुत्तरोपपातिकदशा, ५. आचारदशा (दशाश्रुतस्कन्ध), ६. प्रश्नव्याकरणदशा, ७. बन्धदशा, ८. द्विगृद्धिदशा, ९. दीर्घदशा, १०. संक्षेपकदशा (११०)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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