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________________ ७०४ स्थानाङ्गसूत्रम् करना। ९. अद्धा-मिश्रक-वचन- अद्धा अर्थात् काल-विषयक सत्यासत्य वचन बोलना। जैसे—प्रयोजन विशेष के होने पर साथियों से सूर्य के अस्तगत होते समय 'रात हो गई' ऐसा कहना। १०. अद्धा-अद्धा-मिश्रक-वचन- अद्धा दिन या रातरूप काल के विभाग में भी पहर आदि सम्बन्धी सत्यासत्य वचन बोलना। जैसे—एक पहर दिन बीतने पर भी प्रयोजन-वश कार्य की शीघ्रता से 'मध्याह्न हो गया' कहना (९१)। दृष्टिवाद-सूत्र ९२- दिट्टिवायस्स णं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहादिट्टिवाएति वा, हेउवाएति वा, भूयवाएति वा, तच्चावाएति वा, सम्मावाएति वा, धम्मावाएति वा, भासाविजएति वा, पुव्वगतेति वा, अणुजोगगतेति वा, सव्वपाणभूतजीवसत्तसुहावहेति वा। दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग के दश नाम कहे गये हैं, जैसे१. दृष्टिवाद— अनेक दृष्टियों से या अनेक नयों की अपेक्षा वस्तु-तत्त्व का प्रतिपादन करने वाला। २. हेतुवाद – हेतु-प्रयोग से या अनुमान के द्वारा वस्तु की सिद्धि करने वाला। ३. भूतवाद- भूत अर्थात् सद्-भूत पदार्थों का निरूपण करने वाला। ४. तत्त्ववाद या तथ्यवाद- सारभूत तत्त्व का, या यथार्थ तथ्य का प्रतिपादन करने वाला। ५. सम्यग्वाद— पदार्थों के सत्य अर्थ का प्रतिपादन करने वाला। ६. धर्मवाद— वस्तु के पर्यायरूप धर्मों का अथवा चारित्ररूप धर्म का प्रतिपादन करने वाला। . ७. भाषाविचय, या भाषाविजय- सत्य आदि अनेक प्रकार की भाषाओं का विचय अर्थात् निर्णय करने ___ वाला, अथवा भाषाओं की विजय अर्थात् समृद्धि का वर्णन करने वाला। ८. पूर्वगत— सर्वप्रथम गणधरों के द्वारा ग्रथित या रचित उत्पादपूर्व आदि का वर्णन करने वाला। ९. अनुयोगगत- प्रथमानुयोग, गण्डिकानुयोग आदि अनुयोगों का वर्णन करने वाला। १०. सर्वप्राण-भूत-जीव-सत्त्व-सुखावह– सभी द्वीन्द्रियादि प्राणी, वनस्पतिरूप भूत, पंचेन्द्रिय जीव और पाथवा आदि सत्त्वों के सुखों का प्रतिपादन करने वाला (९२)। शस्त्र-सूत्र ९३– दसविधे सत्थे पण्णत्ते, तं जहासंग्रह-श्लोक सत्थमग्गी विसं लोणं, सिणेहो खारमंबिलं । दुप्पउत्तो मणो वाया, काओ भावो य अविरति ॥ १॥ शस्त्र दश प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अग्निशस्त्र, २. विषशस्त्र, ३. लवणशस्त्र, ४. स्नेहशस्त्र, ५. क्षारशस्त्र, ६. अम्लशस्त्र, ७. दुष्प्रयुक्त मन, ८. दुष्प्रयुक्त वचन, ९. दुष्प्रयुक्त काय, १०. अविरति भाव (९३)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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